कश्यप वंश की गौरव गाथा,
जो कभी जग में गूँजती थी।
सत्य, धर्म, और तप की गाथा,
जो हर हृदय में पूजती थी।
कहाँ खो गए वे स्वाभिमान,
वो स्वर्णिम युग, वो पहचान?
आज क्यों है सब मौन खड़े,
अपनों में ही क्यों बंटते पड़े?
शिक्षा से विमुख, संकल्प विहीन,
अज्ञान के अंधकार में लीन।
जो कभी थे जग के रक्षक,
आज क्यों बन गए निरीक्षक?
एकता का दीप जलाना होगा,
साहस का बिगुल बजाना होगा।
गौरवशाली इतिहास को दोहराओ,
अपना खोया सम्मान फिर पाओ।
जागो कश्यप, समय है आया,
नवयुग का संदेश सुनाया।
अपने हृदय में जोश भरो,
संघर्ष से अब स्वर्ण रचो।
कश्यप समाज के दीप जलेंगे,
आसमान तक उजाले फैलेंगे।
तब गर्व से कहेगा संसार,
यह है कश्यप का संस्कार।