कश्यप् समुदाय के सर्वमान्य : बाबा कालू - धर्म की पत्नी वासु से से आठ वसुयो को जन्म दिया जोकि सब दिशाओं में व्याप्त और प्रसिद्ध है। आप, ध्रुव, सोम धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभाष ये आठ वसु कहे गए हैं धूव का पुत्र काल हुआ और प्रभाश का पुत्र विश्वकर्मा हुआ ये दोनों मुख्यता ज्ञान व शिल्प कला में निपुण थे। लोगों को अपना ग्रास बनाने वाले भगवान काल धूव के पुत्र है।
ध्रुव पुत्र काल आगे जाकर बाबा काल के नाम से प्रसिद्ध हुए। जिसको कश्यप की संतानों ने अपना कुल गुरू माना।' दक्ष के पान्च्जनी के योग से एक हज़ार पुत्र वर्यश्व की नाम से विख्यात हुए नारद ने उनको कहा की आप पता लगाये की धरती की सीमा कहां तक है ये उनकी आज्ञा से चले गए लेकिन वापिस नहीं आये तब प्रजापति दक्ष ने वारिणी के योग से एक हज़ार पुत्रों को जन्म दिया जोकि शबल के नाम से प्रसिद्ध हुए उनको भी नारद ने धरती की सीमा का पता लगाने के लिए भेजा लेकिन वे भी वापिस नहीं आये ये अनिष्ट होता देखकर प्रजापति दक्ष ने नारद को गुरू हीन और ज्ञान हीन होने का श्राप दिया। कहते है गुरू बिना गति नहीं होती और गुरू ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है देवर्षिनारद जी जैसे महाज्ञानी, जो खुद जी, वाल्मीकि जी तथा महाज्ञानी शुकदेव के गुरु थे, को अपना शिष्य बनाकर बनाकर 84 लाख योनियों से मुक्ति दिलाने वाले गुरुओं के गुरु बाबा काल जी भगवान नारायण के अवतार माने जाते है, कहीं-कहीं उनको भगवान शिव का अंश भी कहा जाता है। बाबा काल जी ने नारद जी को दीक्षा दी थी और जनेऊ पहनाया था । बहुत कम कश्यप लोग जानते है कि देवऋषि नारद जी को गुरुमंत्र “नारायण नारायण" भगवान काल ने ही दिया था। प्रचलिंत किदवंती अनुसार - श्राप के कारण जब भी नारद गुरुहीन हो गए थे। इस कारण उनका सम्मान कम हो गया था। ब्रह्मा पुत्र होने के बावजूद भी अपनी चापुलता के कारण उनको यह दंड मिला। नारंद जी अक्सर देवताओं की सभा में जाते रहते थे और जैसे ही नारद जी सभा से वापिस जाते, उनके बैठने के स्थान को गौमाता के गोबर से साफ किया जाता था। नारद जी को पता सब कुछ था पर वो संकोचवश कुछ कह नहीं पाते कि केवल उनके बैठने के स्थान को ही क्यां गौमाता के गोवर से साफ किया जाता है। भगवान विष्णु जी के बैकुंठ धाम में भी उनके जाने के बाद उनके बैठने के स्थान को गौमाता के गोबर से साफ किया जाता था। उनके प्रति सभी देवताओं के इस व्यवहार के कारण नारदजी को बड़ा आश्चर्य हुआ और भगवान विष्णु से इसका कारण खोजो तो भगवान विष्णु ने कहा कि तुम निगुरे जिसका कोई गुरु हो जिस कारण ना हो तुम्हारे बैठने से स्थान अपवित्र हो जाता हैं। नारद जी ने कहा कि मैं गुरु के महत्व से अनजान था, परन्तु में इतना ज्ञानीध्यानी, भगवद्भक्त विद्वान और आपका परम् भक्त हूँ, मेरा गुरु कौन बन सकता है कृपया बताइये कि मैं किसे अपना गुरु बनाऊ? नारद जी के मन में आए अहंकार को देखकर भगवान विष्णु ने नारद जी को कहा कि तुम मृत्युलोक में जाओ और जो भी पहले व्यक्ति तुम्हे दिखे, उसे गुरु धारण करो और दीक्षा लो। नारदजी खुशी-खुशी विष्णु के आदेश का पालन करते हुए मृत्युलोक तरफ चल पड़े, गुरू की खोज में। वहाँ पहले से ही भगवान काल एक मछुआरे का रूप लेकर उनके मार्ग में खड़े हो गए (काल बाबा)। अपने सामने से एक मछली पकड़ने वाले व्यक्ति जिसने कन्धे पर जाल, हाथ में डंडा पकड़ा हुआ था, खड़े देखा तो नारद जी ने नाक भौंह सिकोड़ी और मन में कहा- यह मछली पकड़ने वाला मेरा गुरु नहीं हो सकता। तुरन्त ही उल्टे पैर जल्दी जल्दी विष्णु लोक को पहुंचे और भगवान विष्णु ने नारद जी से पूछा कि गुरु मिल गया तो नारद जी कहने लगे कि मिल तो गया लेकिन एक.... मछली पकड़ने वाला, मुझ भगवद् भक्त का गुरु कैसे हो सकता है? भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने गुरु का अपमान किया है और जिस कारण तुम्हे 84 लाख योनियों का दुः ख भोगना होगा अगर अपना उद्धार चाहते हो तो उसी मछुआरे से जाकर मुक्ति का मार्ग पूछो। नारद जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और नारद जी उसी मछुआरे के पास जाकर हाथ जोड़कर सारी कथा व अपने संकल्प के बारे में में कहा कि मैंने आपको गुरू मान लिया है और मुझे मुक्ति का मार्ग बताओ। ज्ञानी रूपी काल वसु ने कहा कि “मुझे तो गुरू का मतलब भी नहीं मालूम है। मुझे जाने दो, मैं कुछ नहीं जानता हूँ।” तब नारदजी ने मछुआरे के पैर पकड़ लिये और बोले आप मेरे आन्तरिक जीवन के गुरू हैं और आप ही मुझे 84 लाख योनियों से मुक्ति दिला सकते हो। तब काल बाबा जी ने नारद जी से कहा कि तुम्हारा उद्धार ब्रह्मा जी कर सकते है और तुम उनके पास जाकर रेत पर 84 लाख योनियों के चित्र बनवाकर उन्हें अपने शरीर से नष्ट कर दो, तुम्हारा कल्याण होगा। (उल्लेखनीय है कि आज भी कई जगह जब किसी की मृत्यु होती है तो उसकी तेहरवीं पर हुए हवन की राख को रात को किसी मट्टी के बर्तन से ढक्कर रख दिया जाता है और अगली सुबह उस रेत पर अपने आप उकरी हुई ओडी तिरछी छवियों योनियों को मानकर नष्ट कर उस व्यक्ति की आत्मा को मुक्त करने की प्रथा प्रचलित है।
काल जी के आदेश अनुसार नारद जी मछली के जाल से तीन धागे का जनेऊ अपने गुरु की निशानी के रूप में लेकर, ब्रह्मा जी के पास गए और सब समझते हुए भी न समझने का नाटक करते हुए बोले ये लाख 84 क्या होती है आप मुझे यह समझाओ। मुझे आप चित्र बनाकर समझाओ। भगवान् ने ज़मीन लाख चौरासी का चित्र बना दिया और नारद जी अपने मछुआरे गुरु के बताये अनुसार चित्र पर लोट कर चित्र मिटा दिया और हाथ जोड़कर कहने लगे कि आप इस जग के निर्माता हो और 84 लाख योनिया भी आपने ही बनाई हैं और उन सबको अपने शरीर से नष्ट करके मैंने अपने गुरु के बताये अनुसार मुक्ति पा ली है। तब ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा कि तुम धन्य हो तो तुम्हे ऐसा गुरु मिला, जिन्होंने इतने कठिन श्राप से कितनी आसानी से मुक्ति दिलवा दी। ब्रह्मा जी ने नारद तो को यह भी वरदान दिया कि जब तक तुम अपने गुरु का दिया गुरुमंत्र नारायण नारायण जपते रहोगे, तुम्हे किसी का श्राप नहीं लगेगा और तुम्हारा गुरुमंत्र ही तुम्हारी पहचान होगी। काल बाबा जी, कश्यप् समुदाय में सभी उपजातियों में एकमात्र सर्वमान्य गुरु है और अलग-अलग स्थानों कालु सिद्ध, कालु पीर, कालु देव, कालु कहार या कालु महाराज आदि के नाम से प्रसिद्ध हैं।