कौन थे ऋषि कश्यप
हिंदू धर्म के अनुसार, प्रारंभिक काल में ब्रह्मा जी ने समुद्र और धरती पर हर प्रकार के जीवों की उत्पत्ति की. इस काल में उन्होंने अपने कई मानस पुत्रों को भी जन्म दिया, जिनमें से एकमरीची थे. कश्यप ऋषि मरीची जी के विद्वान पुत्र थे. इनकी माता कला कर्दम ऋषि की बेटी व भगवान कपिल देव की बहन थीं. अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप व तप के बल पर उनकी गिनती श्रेष्ठतम महान विभूतियों में होती थी.
मान्यता है कि सृष्टि की रचना में कई ऋषि मुनियों ने अपना योगदान दिया. जब हम सृष्टि के विकास की बात करते हैं तो इसका अर्थ जीव, जन्तु या मानव की उत्पत्ति से होता है. पुराणों के अनुसार कश्यप ऋषि के वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए. कश्यप जी की 17 पत्नियां थीं, जिनके वंश से सृष्टि का विकास हुआ.
सृष्टि के निर्माता कश्यप ऋषि
कश्यप ऋषि को सृष्टि का निर्माता भी माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, मान्यता है कि कश्यप ऋषि से ही संपूर्ण सृष्टि का निर्माण हुआ है. पुराण के अनुसार, कश्यप जी की पत्नियों से ही मानस पुत्रों का जन्म हुआ. जिसके बाद से इस सृष्टि का सृजन हुआ. इसीलिए महर्षि कश्यप सृष्टि के सृजक या सृष्टि के सृजनकर्ता कहलाए. कश्यप एक प्रचलित गोत्र का भी नाम है. यह एक बहुत व्यापक गोत्र है. कहते हैं कि जिस मनुष्य का गोत्र नहीं मिलता उसका गोत्र कश्यप मान लिया जाता है, क्योंकि एक परम्परा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई.
परशुराम ने धरती का किया दान
भगवान परशुराम को ऋषि कश्यप के शिष्य थे. कथा के अनुसार, एक बार परशुराम जी ने पूरी धरती पर विजय प्राप्त कर जब समस्त क्षत्रियों का नाश कर दिया तो उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया. जिसके बाद उन्होंने पूरी धरती को अपने गुरु कश्यप मुनि को दान कर दी, जिसके बाद कश्यप जी ने परशुराम से कहा-अब तुम मेरे देश में मत रहो. अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने प्रत्येक रात पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया. वे रोजाना रात्रि में मन के समान तेज गमन शक्ति से महेंद्र पर्वत पर चले जाते थे.