मरीचि कश्यप - ज्ञात मानव इतिहास की सबसे बड़ी बृहद और लंबी राजवंश-परंपरा ब्रह्मा के समान मानस-पुत्र की रही थी। पूर्णमास, पर्व, कश्यप जैसे आदिम राजवंशों के अलावा देव, दैत्य, दानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर आदिम राजवंशों के लेकर मिस्र के नृगृतो, अमेरिका के इंका और मायांस, पश्चिमी एशिया के कुर्द, अमारेह, परशियन, उज़बेग और यूरोप के डच जैसी आधुनिक जातियां और भारत के प्रसिद्ध सूर्य, चंद्र और नाग राजवंश का मूल स्रोत मरीचि कुल ही था। मरीचि का मूल आश्रम सुमेरु शिखर (काकेशियन रीजन) के निकट उत्तर-मद्र में स्थित था। मरीचि कुल में उत्पन्न कश्यप के नाम से ही इस क्षेत्र में एक सागर का 'कैस्पियन सी' स्थित है, जो कि नामकरण और मठ के रूप में स्थित है, जिसमें से तीन द्वारा विकसित सुमेरियन, कैल्डियन, वेवोलियन आदि प्राचीन सभ्यताओं का उद्गम स्थल होने का संदर्भ है। मरीचि के इस आश्रम में काकेशियान रीजन में होने का प्रमाण मौजूद है। आर्यों के मूल पुरुष का क्षेत्र होने के कारण उत्तर-मद्र में भारतीय पुराणों में जहां 'आर्यवीर्यन' कहा गया है, वहीं जेंड अवेस्ता में इसे 'एरियनेम बेजो' और ग्रीक साहित्य में 'एरियाना' का नाम दिया गया है। आई भाषा में विकृति का प्रभाव इस क्षेत्र को अब 'अजरबेजान' के नाम से जाना जाता है। कदाचित्त मरीचि कुल के किसी वंश ने यूरोप के सुदूर पश्चिम में भी अपना आश्रम स्थापित किया होगा। फ़्रांस का 'मार्शलीज़' नामक नगर कुछ 'मैरीचैलीज़' जैसे शब्द का ही अपभ्रंश प्रतीत होता है। स्ट्रैवो नामक प्राचीन यूनानी लेखक के 'भूगोल' नामक ग्रंथ में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है कि 'इस नगर में यज्ञ-भूमि होने के नाते मिले हैं' स्वतः ही मार्शलीज या मैरीचलेज की असंतुलित समानता की पुष्टि करते हैं। फ्रांस के कैथेड्रल नामक गिरिजाघर की दीवारों पर साधु, संत, देव, मानव, राक्षस आदि की मूर्तियां और पेरिस के नोट्रेडम नामक ईसाई मंदिरों की दीवारें बनी हुई हैं।
वेदमंत्रों को मानवी भाषा में व्यक्त करने वाले मंत्रद्रष्टा सप्त ज्योतिषियों में मरीचि का प्रमुख स्थान था। दण्डनीति के मूल प्रवर्तक होने के नाते मरीचि द्वारा स्थापित गुरुकुल को उपयुक्त प्राणियों के सृजन का केन्द्र भी माना जा रहा है। मरीचि को संभूति से पूर्णमास नामक प्रथम माही-संतान उत्पन्न करने का श्रेय भी जाता है। पूर्णमास को सरस्वती नामक स्त्री से विराज व पर्व ने दो पुत्रों को बुलाया। पर्वस वास पर्वसा को एक अतिरंजित सुपरहीरो पुत्र उत्पन्न हुआ। जल विक्रेताओं के अपने प्रयासों से कश्मीर से पश्चिम जलमग्न क्षेत्र के मध्य भाग में कच्छप आकार की भूमि को बाहर निकलने में सफलता मिली, जिसके कारण यह पुरुष 'कूर्म' प्रजापति के रूप में प्रसिद्ध हुआ (शतपथ ब्राह्मण-7/5/1/5)। इस पुरुष के रामायण में यज्ञवास, स्तंभ, पृथु, यजु, सुधामा, वत्सर, वै, विभ्रम, राम, अमित, देवल व पुनः मरीचि नामधारी अति विशिष्ट नामकरण मंत्रद्रष्टा ऋषि व प्रजापति हुए। तदन्तर व्युशाख, सौजन्य, मृगय, मृगय, अभय, कण्यक, कात्यायन, गदायन, भावनन्दि, महाचक्री, दक्षपायन, कौवेरक, एषप, वभ्रव, प्राचेय, प्रासेव्य, ससिस, मातंगिन, यमुनि, कौरिष्ठ, भोज, गोमायन, देवायन, योधायन, कार्तिव्य, हस्तिदान, निकृतज, शाक्रयण, पामोली, श्याकर, ज्ञानसंज्ञेय, वैवसप आदि-आदि ऋषियों की श्रृंखला बिना किन्हीं विशेष प्रार्थना के ही गुजरी। इन पुरातात्विक स्थलों में स्थापत्य में निर्मित पुरुषों का कोई स्वतंत्र रूप उभरता हुआ नहीं मिला, मूलतः ये सभी पुरुष अपने-अपने वैयक्तिक खण्डों के बजाय 'मरीचि-गोत्रीय' या फिर 'मारीचि' के उदय से उभर रहे थे। संभवतः शत मरीचियों में से ही किसी ने फ्रांस में 'मरीचालय' नामक आश्रम की स्थापना की जाएगी। इस मरीचि-श्रृंखला के अंतिम पुरुष को 'अरिष्टनेमि' नाम का एक पुत्र हुआ, जो सूर्य के समान उदय मंडल का स्वामी था (पुत्रं प्रतिमन्नाऽरिष्टनेमिः प्रजापतिः पुत्रं मरीचं सूर्यभं वधौ वेशो विज्जन्त-वायु पुराण-65.112)। कषाय (मद्य) का सेवन करने के कारण इस प्रतापी पुरुष का नाम 'कश्यप' है। कश्मीर का प्राचीन नाम 'काश्य-मुर' होने के कारण इसी प्रतिभावान पुरुष के गृह-प्रदेश का कारण बताया गया है। कालांतर में इसी कश्यप व दक्ष की तीर्थ यात्राओं से उत्पन्न संतों द्वारा ही जहां देव-दानव-दैत्य-यक्ष-गंधर्व-नाग-गरुड़ आदि जनजातियों की उत्पत्ति हुई, वहीं अन्य ब्रह्म शिष्यों द्वारा पृथ्वी के जिस उत्तरी क्षेत्र में ऋषि परंपरा की उत्पत्ति हुई, उन्हें ही इन शिष्यों की प्रकृति के विशिष्ट ऋषि भूमि या फिर आधुनिक रूसी भूमि या रसिया नाम से विकसित किया गया। 'महाभारत' (उद्योग पर्व-4/15) में द्रुपद द्वारा पांडवों को पश्चिमोत्तर के शक, दरद, पल्लव, कंबोज सहित ऋषियों के पादप आदि से सहायता के मंत्र में व्यवहृत 'ऋषिक' शब्द का कार्य निश्चित रूप से आधुनिक 'रशियनों' के लिए किया जा रहा था। ऋषि कश्यप की पौराणिक कथा कैस्पियन सी, कास्परोव आदि क्षेत्र में भारतीय 'ग्राम' के सामान्य रूसी शब्द 'ग्राद' या संस्कृत शब्द 'स्नुषा' (यानी बहू), 'लाया' (यानी सिंह), 'दूरव' (यानी घास) और 'अग्नि' तथा 'धूम' (यानी धुआँ) के लिए व्यवहृत अर्थात् 'स्नोखा', 'लियो','दूर्भ' 'अग्नि या अगोन' और 'धूम आदि' रूसी शब्द और 'लिथुआनिया' प्रदेश की सांस्कृतिक भाषा इस क्षेत्र में ऋषियों के निवास की पुष्टि होती है। यही नहीं, बल्कि आधुनिक सन्दर्भ में ऋषियों के खगोल विज्ञान, जैव और रासायनिक अनुसंधानों में चूहों के अस्तित्व की प्रवृत्तियाँ भी किसी-न-किसी रूप से पूर्व में रहे ऋषियों के आनुवंशिकी-परम्पराओं को ही आनुपातिक बनाती हैं। इसी मरीचि कश्यप राजवंश में वैवस्वत यम (ईरान के यिम), वैवस्वत मनु (भारत में आर्यों के मूल पुरुष), शनैश्चर (यूनान के सिना) और नृग (मेसोपोटामिया के नृग्रिटो या अफ्रीका के नीग्रो) हुए, वंशधर यूनान, मिस्र, पर्शिया (ईरान), मेसोपोटामिया (इराक) और भारत के प्राचीन राजवंशों के मूल पुरुष हुए। यही नहीं बल्कि मरीचि का यह कुल नृग्रिटो, मायांस (मेक्सिको), डच (हॉलैंड) और भारतीय नागवंशी (नागा), सोमवंशी और रघुवंशी क्षत्रियों के रूप में आज भी अपनी विरासत को अक्षुण्ण बनाए हुए हैं।
जय महर्षि कश्यप 👏