धन्य धन्य बाबा मोती राम जी महिरा सिक्ख पंथ के लासानी और शिरोमणि शहीद हुए हैं, जिन्होंने गुरु चरणों में भीग कर अपना तन, मन, धन न्योछावर करते हुए अमर शहीद का दर्ज प्राप्त किया । बाबा मोती राम महिरा जी का जन्म ९ फरवरी १६७७ को पिता हरा राम जी के घर माता लद्धो जी के कोख से हुआ। आप जी के पिता जी खाना बनाने का काम करते थे। पिता पुरखे कारोबार होने के कारण आप जी ने भी इसी कारोबार में महारत हासिल की और १७ साल की आयु में आप जी को सूबा सरहिंद के कैदखाने में रसोइए की नौकरी मिली । बाबा मोती राम जी महिरा सरहिंद की कारागार में बन्द हिन्दू कैदियों के लंगर के इंचार्ज थे ।
परी निसा मोती राम है। पाँच कैदी रोटी का काम करते हैं। (श्री गुरुपुर प्रकाश)
धन्य गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज की ओर से साजे गए पाँच प्यारों में भाई हिम्मत सिंह रिशते में बाबा मोती राम जी के चाचा जी लगते थे । मोती राम संगतिपुर वासी। राम जय पुन्य कमसी ।
हिम्मत सिंह तित चाचू जानहो । पांच प्यारन माहि प्रधानो ।
धन्य धन्य माता गुजर कौर जी और साहिबजादे धन्य धन्य बाबा जोरावर सिंह जी और धन्य धन्य बाबा फ़तेह सिंह जी को जब मोरिंडा के कोतवाल ने गंगू ब्राह्मण की शिकायत पर बंदी बना कर सरहिंद के नवाब वजीर खान के सामने पेश किया तो माता जी एव छोटे साहिबजादो को ठन्डे बुर्ज में रखा गया। सरहिंद के नवाब ने ऐलान कर दिया कि जो भी माता जी और छोटे साहिबजादों की सहायता करेंगा, उसे परिवार समेत कोहलू में पीड़ दिया जाएगा परन्तु इस के बावजूद जब बाबा मोती राम महिरा जी को पता चला कि माता जी और छोटे साहिबजादों को ठन्डे बुर्ज में रखा जा रहा है, तो बड़े प्यार से प्रशदा तैयार कर ठन्डे बुर्ज मुँहचे पर माता जी ने बाबा मोती राम महिरा जी ने कहा कि अपनी सेवा प्रवान है किन्तु हम मुगलों की रसोई का खाना नहीं खाएँगे। यह सुन कर बाबा मोती राम जी बहुत चिंतित हुए और उदास होकर घर लौट आए। बाबा जी की माता और पत्नी ने उदासी का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि धन्य गुरु गोबिंद सिंह जी के माता जी और छोटे साहिबजादों को सरहिंद के नवाब ने ठन्डे बुर्ज में कैद कर रखा हुआ है और उन्होंने मुगलो की रसोई का खाना खाने से इन्कार कर दिया और वह कई दिनों से भूखे प्यासे थे । जंगलो में विचरने से कंटीली झाड़ियों से उनके वस्त्र तार तार हो गए थे। उनके शरीर पर झारीटे और घाव थे। लम्बी यात्रा के कारण छोटे साहिबजादों के पैरो में शाळे पड़ गए है और अब ठन्डे बुर्ज में तेज़ हवा चलने के कारण अधिक ठण्ड से साहिबजादों के घाव ऐठ गए है और उन्हें तकलीफ दे रहे है परन्तु इनके बावजूद माता जी और साहिबजादे चड़दी कलां में है। यह दर्द की दास्तान सुन कर बाबा जी की माता और धर्म पत्नी ने कहा इस समय हमें गुरु साहिब के परिवार की सेवा में उपस्तिथ
होना चाहिए । अपने घर परामार्श कर बाबा मोती राम जी बड़ी पवित्रता
के साथ गर्म दूध का गड़वा लेकर ठंडे बुर्ज की ओर चल दिए। चलने से पहले बाबा जी की पत्नी ने अपने गहने बाबा जी को दे दिए और कहा कि
यदि पहरेदार उन्हें रोके तो वह गहने उन्हें देकर आगे चले जाएं पर यह
सेवा जरूर निभाएं । धन्य है बाबा जी के माता जी और धर्म पत्नी
जिन्होंने यह सेवा निभाने के लिए बाबा जी का तन, मन और धन से साथ
दिया । बाबा मोती राम जी जब दूध का गड़वा लेकर ठंडे बुर्ज पुँहचे तो
पहरेदारों ने रोक लिया। बाबा जी ने गहने उन्हें दे दिए और आगे बढ़ गए
। एक पहरेदार ने उनसे पूछा कि आपको नवाब से डर नहीं लगता क्योकि
उसके ऐलान किया हुआ है कि जो भी गुरु साहिब के परिवार की सहायता
करेगा, उसे कोहलू में पीस दिया जाएगा। बाबा जी ने बड़ी नम्रता से
उत्तर दिया कि गुरु साहिब की ख़ुशी प्राप्त करने के लिए अपने आप भी
न्योछावर करना पड़ जाए तो कोई बड़ी बात नहीं। पहरेदार ने उन्हें आगे
जाने दिया। कड़ाके की ठंड में ठंडे बुर्ज में माता जी और छोटे साहिबजादों
को गर्म दूध पिलाया और माता गुजरकौर जी ने अनेक असीस दी। कवी
सन्तरेण भाई प्रेम सिंह जी लिखते है :
पिख के प्रेम सु मोती केरा। माता कहयो भला होवै तेरा ।
बाबा मोती राम जी के लिए माता जी की असीस एक अनंत दौलत थे।
दौलत के सामने दुनिया की सब दौलते अब मिटटी थी। बाबा जी ने तीन
रातो के लिए माता जी और छोटे साहिबजादों को दूध पिलाने की सेवा
निभाई।
छोटे साहिबजादों की वीरगति को बाबा मोती राम जी ने अपनी आखो से
देखा और फिर वैराग में आकर अपनी आंसूओं से भरी आँखों को
संभालते हुए माता गुजर कौर जी को ठंडे बुर्ज जाकर इस शहीदी की
व्यथा सुनाई। माता जी को यह समाचार सुनना बाबा जी के लिए किसी कड़े संघर्ष से कम नहीं था। छोटे साहिबजादों की शहीदी सुनकर माता जी ने अकाल पुरख (भगवन) का धन्यवाद किया और बाबा मोती राम जी को अस्सीसो दी। तत पष्टचार माता जी ने भी दशम द्वार से अपने शवास निकालने हुए सचखंड प्रस्थान कर लिया। माता जी और साहिबजादों की शहीदी के पशचात दीवार टोडर मल जी से परामर्श क्र बाबा जी अते खान नाम के लक्कड़हारे से चंदन की लककड़ियो का छकड़ा भर कर लाए और गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप साहिब पर अपने हाथों से चिखा बना कर दीवान टोडर मल जी के साथ माता जी और छोटे साहिबजादो का संस्कार किया। बाबा जी ने खुद पावन अर्थिया को कंधा दिया। बाबा मोती राम जी द्वारा निभाई सेवा गुप्त ही रहती परन्तु गंगू बराह्मण का चचेरा भाई जिस का इतिहास में नाम पम्मा लंगा लिखा है, और जो बाबा मोती राम जी के साथ वजीद खान की रसोई में काम करता था, ने बाबा जी की शिकायत वजीद खान के पास कर दी -
नीच गंगू को भ्रात एक लंगा। तिन लीनो मोती संग पंगा ।
जायें वाजिदेही भेद बताय। एक झीवर पेय पी रहा है.
गुरु को मत बाल सुखदाई। इसहि दीन बहुत वडीआई ।
पम्मे लंगे की चुगली करने के कारण वजीद खान ने बाबा जी को परिवार
समेत पेश होने का आदेश दिया। वजीद खान ने क्रोध से आग बबूला
होकर कहा कि मोई राम तुम्हारी शिकायत आई है कि तुम भी सिख हो
और तुमने माता जी और साहिबजादो को दूध पिलाया है। बाबा मोती राम
जी कहने लगे कि यह सच्चाई है। मैं धन्य धन्य श्री गुरु गोबिंग सिंघ जी का श्रद्धालु हूँ और मेरे पिता जी हरा राम जी श्री आनंदपुर साहिब रसद का छकड़ा लेकर गए थे, परन्तु घेराबंदी हो जाने के कारण वह श्री आनंदपुर साहिब के लिए भीतर ही रहे और फिर अमृतपान करने के पशचात हरा सिंघ बन गए। उन्होंने श्री आनंदपुर साहिब के युद्ध में वीरगति को प्राप्त किया। यह सुनकर वजीद खान और भड़क गया और आदेश किया कि या तो मुस्लमान बन जायो या फिर कोहलू में पीस दिया जायेगा। बाबा जी ने वीरगति को प्राप्त करना स्वीकार किया। क्रूर हाकर अभी और परीक्षा लेना चाहता था। सूबा सरहिंद ने आदेश दिया कि सबसे पहले इस्सके पुत्र को कोहलू में पीस दिया जाए। बाबा जी ने अपने बेटे की और देखा। सारा दारवार साँसे रोक कर पिता-पुत्र की मिलनी को देख रहा था। बाबा जी को महसूस हुआ कि जिस रास्ते पर गुरु के लाल चले है , उसी पथ पर चलने का सौभाग्य उन्हें गुरु की इलाही दुष्टि से प्राप्त हो रहा है। बाबा मोती राम जी की आँखे के सामने बाबा जी के छ : साल के पुत्र, अस्सी वर्ष की माता लद्धो जी और धर्म पतनी बीबी भोली जी को सरहिंद के तेलियो मोहल्ले में कोहलू में पीस कर शहीद कर दिया गया। परिवार कोहलू में पीस जा रहा था पर बाबा मोती राम जी वाहिगुरु के कौतको को अपनी भीगी आँखो से देख रहे थे। बारी-बारी सारा परिवार कोहलू में पीस दिया गया। तेल वाला कड़ाहा खून से भर गया। हड्डियों का चुना बन गया। मास की मज्झा बन गई। संसार की नाशवानता का भयंकर रूप बाबा मोती राम जी के सामने प्रकट हो गया परन्तु सतगुरु जी की
किरपा से एक पल में ही बाबा मोती राम जी त्रोकालदर्श बन गए। बाबा
जी के पूरे परिवार की शहीदी के पशचात बाबा जी को भी कोहलू में पीस दिया गया। बाबा बंदा सिंघ बहादर जी ने जब सरहिंद जीता तब बाबा मोती राम जी की शहादत के बारे में सुन कर उनके मुँह से ये बचन निकले
;
धन्य मोती जिन पुष्य कमाया। गुरु लाला ताई दूध पियाला ।
बाबा मोती राम महिराजी सतगुरु जी के सनमुख असल में नाम सिमर कर प्रवान हुए (स्वीकार हुए) और उन्हें सच्ची दरगाह में सम्मान मिला।
जिन गुरुमुख नाम ध्याया आए ते प्रवण।।
नानक कुल उधरहि आपना दरगह पावहि माणं ।।
गुरुद्वारा अमर शहीद बाबा मोती राम महिरा जी, गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब से कुछ मीटर की दूरी पर मौजूद है। यहाँ पर वह पावन गिलास सुस्थित हैं जिन में छोटे साहिबजादों और माता गुजर कौर जी ने दूध पिया था।
धन्य धन्य श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज की और से धन्य धन्य बाबा मोती राम महिरा जी को दी गई असीस दशम पिता धन्य धन्य श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज उस समय मालवे के गाँव सीलोआण में थे जब उन्हें राय कल्ला के भेजे हुए नूरे माही ने छोटे साहिबजादों की वीरगति (शहादत) का साका सुनाया और सरहिंद में जो हुआ उसके वेयर में विस्तार से बताया। सर्वज्ञ सतिगुरु जी ने क्रूरता की अंतयता के बारे में सुन कर वहाँ पर उगे हुए के पौधे को उखाड़ कर फेंक दिया और बचन किया की सरहिंद के तुर्कों की जड़ उखड गई है।
पाप की नैना भर चुकी है। आज से क्रूर सम्राजय की समाप्ती होनी शुरू हो गई है। जब करह हम वासा
बाबा मोती राम जी की सेवा और शहादत को सख्त घालना (कमाई) का नाम देते हुए श्री दशमेश पिता जी ने फरमाया (कहा) कि मोती राम ने अपनी सख्त कमाई से मेरे अति निकट प्यारे गुरसिक्ख का दर्जा प्राप्त क्र लिया है। कलगीधर पातिशह जी ने बचन किया कि संसार का तमाशा देखकर जब हम सचखंड में जा बिराजेंगे, तब मोती राम की जगह हमारे बिल्कुल पास होगी और हम सदैव उसे अपने गले का हार बनाकर अपने हृदय में बसा क्र रखेंगे। भाई किशन सिंघ जी रचित शहीदीनामा इसका प्रमाण है :
मोती हमरे सिख प्यारा। तिस का कर्ज मम सिर भारा ।
जब हम धर्मस्थल पर जाकर बैठते हैं। मोती राम हम पास ही रहते हैं.
सच्चखंड जब करह हम वासा। मोती राम मम ढिग होए वासा ।
हमरे उर का हार वह बने। सद ही हमरे हृदय संग सुने । इतिहास और लोग चेतना किसी व्यक्ति को ऐसा पद ऐसे ही नहीं दे देते। ऐसी अवस्था की प्राप्ति के लिये पिछले जन्मो के कर्मो के तेजस्व के साथ भगवान की रेहमतों की भाग्यशाली अनुकंपा और सब पर से अपने आप को कुर्बान (न्योछावर) क्र देने की दृष्टि भी प्रगट होने चाहिए। ऐसी प्राप्ति सतगुरु जी की भली दृष्टि से ही संभव हो पाती है। सतिगुरु, साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी का यह बचन अनंत समय तक बाबा मोती राम जी को सतिकार और सम्मान देता रहेगा। शहीदनामा में से भाई किशन सिंघ जी की कलम से सरबंसदानी सतिगुरु जी के मुख से ये बचन है मम सिक्ख महि मोती खास । सदा रहे गुरु चर्णन पास । समर्थ सतिगुरु जी के ऐसे सौभाग्यशली वर्दान किसी नसीब वाले गुरूसिक्ख को ही प्राप्त होते है।
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