कश्यप ऋषि वंशावली

 


कश्यप ऋषि 

प्राचीन वैदिक काल के महान ॠषियों में से एक ऋषि थे कश्यप ऋषि. हिंदु धर्म के ग्रंथों में कश्यप ऋषि के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख प्राप्त होता है, वेदों, पुराणों तथा अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुत प्रयुक्त हुआ है, कश्यप ऋषि को सप्त ऋषियों में स्थान प्राप्त हुआ था इनकी महान विद्वानता और धर्मपरायणता के द्वारा ही यह ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ माने गए यह धार्मिक एवं रहस्यात्मक चरित्र वाले महान ऋषि थे. महर्षि कश्यप ब्रम्हा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे. इस प्रकार वे ब्रम्हा के पोते हुए।

महर्षि कश्यप पिंघले हुए सोने के समान तेजवान थे। उनकी जटाएं अग्नि-ज्वालाएं जैसी थीं। महर्षि कश्यप ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते थे। सुर-असुरों के मूल पुरूष मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहां वे पर-ब्रह्म परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते थे। मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे। उन्होने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र ही क्यों न शामिल हों। महर्षि कश्यप राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भिक एवं निर्लोभी थे। कश्यप मुनि निरन्तर धर्मोपदेश करते थे, जिनके कारण उन्हें ‘महर्षि’ जैसी श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरशः पालन करते थे। उन्ही की कृपा से ही राजा नरवाहनदत्त चक्रवर्ती राजा की श्रेष्ठ पदवी प्राप्त कर सका।

महर्षि कश्यप अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप एवं तप के बल पर श्रेष्ठतम महाविभूतियों में गिने जाते थे। महर्षि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने गए। सप्तऋषियों की पुष्टि श्री विष्णु पुराण में इस प्रकार होती है:-


वसिष्ठः काश्यपोऽयात्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।

विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोऽभवन्।।

(अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं, वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।)


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हमारा समाज जीवन और जीव की सरचना की उत्पति जीतना ही पुराना है हर युग में हमें एक नया नाम मिला, लेकिन हमारा अस्तित्व रामायण काल में श्री राम और मह्रिषी कश्यप के द्वारा किये गए कार्य से सामने आया जिसका विवरण हमे रामायण में व्र्तांत से मिलाता है , हर युग में हमने समाज की सेवा की है महाभारत काल में भी समाज के अन्य नाम का विवरण है जैसे की मेहरा, कश्यप, निषाद, कहार, कश्यप राजपूत, धीवर, झिन्वर, केवट, मल्लाह, धुरिया, डोंगरा, साहानी, रायकवार, बाथम,तुराहा,कीर,गौर, मांझी, एकलव्य आदि हमारा अतीत कुछ भी हो आज हम आतमनिर्भर है हम आज आदर्श जीवन वय्तित कर रहे है , वेदों में पुरानो में हमे मह्रिषी कश्यप को हमारा पूर्वज बताया गया है हमे इनसे जुड़ना चाहिए और अपने बटे हुए समाज को एक सूत्र में जुड़ना चाहिए ताकि और समाज की तरह हमारा समाज भी एकसूत्र में बधकर अच्छी तरह से फल फूल सके , प्रिय दोस्तों समाज जुड़ने से बनता है न की अलग अलग चलने से आज हमे आज जो नाम (कश्यप) मिला है उसी का अनुसरण करते हुए आगे बढना चाहिए.

काम देवताओं का मनोरंजन करना और उन्हें प्रसन्न रखना था. उर्वशी, मेनका, रम्भा एवं तिलोत्तमा इत्यादि कुछ मुख्य अप्सराएँ हैं.

क्रोधवषा: सर्प जाति, बिच्छू और अन्य विषैले जीव और सरीसृप.

सुरभि: सम्पूर्ण गोवंश (गाय, भैंस, बैल इत्यादि). इसके आलावा इनसे ११ रुद्रों का जन्म हुआ जो भगवान शंकर के अंशावतार माने जाते हैं. भगवान शंकर ने महर्षि कश्यप की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपने अंशावतार के पिता होने का वरदान दिया था. वे हैं: कपाली, पिंगल, भीम, विरूपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुधन्य, शम्भू, चंड एवं भव.

सरमा: हिंसक और शिकारी पशु, कुत्ते इत्यादि.

ताम्रा: गीध, बाज और अन्य शिकारी पक्षी.

तिमि: मछलियाँ और अन्य समस्त जलचर.

विनता: अरुण और गरुड़. अरुण सूर्य के सारथि बन गए और गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन.

कद्रू: समस्त नाग जाति. कद्रू से १००० नागों की जातियों का जन्म हुआ. इनमे आठ मुख्य नागकुल चले. वे थे वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड, महापद्म और धनञ्जय.सर्प जाति और नाग जाति अलग अलग थी. सर्पों का मतलब जहाँ सरीसृपों की जाति से है वहीँ नाग जाति उपदेवताओं की श्रेणी में आती है जिनका उपरी हिस्सा मनुष्यों की तरह और निचला हिस्सा सर्पों की तरह होता था. ये जाति पाताल में निवास करती है और सर्पों से अधिक शक्तिशाली, लुप्त और रहस्यमयी मानी जाती है.

पतंगी: पक्षियों की समस्त जाति.

यामिनी: कीट पतंगों की समस्त जाति.

इसके अलावा महर्षि कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया. पुलोमा से पौलोम नमक दानव वंश चला और कालका से ६०००० दैत्यों ने जन्म लिया जो कालिकेयकहलाये. रावण की बहन शूर्पनखा का पति विद्युत्जिह्य भी कालिकेय दैत्य था जो रावण के हाथों मारा गया था

ऐतरेय ब्राह्मण में कश्यप ऋषि के बारे में प्राप्त होता है कि इन्होंने ‘विश्वकर्मभौवन’ नामक राजा का अभिषेक कराया था. इसके अतिरिक्त शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप कहा गया है, महाभारत एवं पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्मा के छः मानस पुत्रों में से एक ‘मरीचि’ थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र को उत्पन्न किया था तथा कश्यप ने दक्ष प्रजापति की सत्रह पुत्रियों से विवाह किया.


कश्यप ऋषि सृष्टि के आदि पुरूष:

सृष्टि के विकास की नींव में ऋषि कश्यप एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने कुल का विस्तार किया था. ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र ऋषि कश्यप जिन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है. इनकी माता ‘कला’ था जो कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी. पुराणों अनुसार सुर-असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर स्थित था जहाँ वे परब्रह्म परमात्मा कि तपस्या में लीन रहते थे. देव, दानव एवं मानव सभी ऋषि कश्यप को बहुत आदरणीय मानते एवं उनकी आज्ञा का पालन करते थे. ऋषि कश्यप ने अनेकों स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी.


कश्यप ऋषि गोत्र :

ऋषि कश्यप के नाम पर गोत्र का निर्माण हुआ है यह एक बहुत व्यापक गोत्र है जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के गोत्र का ज्ञान नहीं होता तो उसे कश्यप गोत्र का मान लिया जाता है और यह गोत्र कल्पना इस लिए कि जाती है क्योंकि एक परंपरा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई मानी गई है अत: इस कारण कश्यप ऋषि को सृष्टि का जनक माना गया है.


ऋषि कश्यप और परशुराम :

जब समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर परशुराम ने पृथ्वी पर से समस्त क्षत्रियों का नाश कर दिया तो उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया और उसमें सारी पृथ्वी कश्यप ऋषि को दान में दे दी . पृथ्वी क्षत्रियों से सर्वथा रहित न हो जाय इस विचार को सोचकर ऋषि कश्यप ने परशुराम से कहते हैं कि अब यह पृथ्वी उनकी है अत: अब तुम दक्षिण समुद्र की ओर महेंद्र पर्वत पर निवास करो और परशुराम ऋषि की आज्ञा को स्वीकार करके ऐसा ही किया तथा रात्री को पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया वे प्रति रात्रि में मन के समान तीव्र गमनशक्ति से महेंद्र पर्वत पर चले जाते थे.


मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे। उन्होने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र या पत्नियां ही क्यों न शामिल हों। महर्षि कश्यप राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भिक एवं निर्लोभी थे। कश्यप मुनि निरन्तर धर्मोपदेश करते थे, जिनके कारण उन्हें श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरश: पालन करते थे। महर्षि कश्यप के अनुसार, ‘दान, दया और कर्म-ये तीन सर्वश्रेष्ठ धर्म हैं और बिना दान सब कार्य व तप बेकार हैं।’ महर्षि कश्यप हिंसा, अधर्म, असत्य, अनाचार, शोषण, अत्याचार, अहंकार, काम-वासना, ईष्र्या, द्वेष, लालच, फरेब आदि ‘तामसिक’ प्रवृतियां त्यागकर अहिंसा, धर्म, परोपकारिता, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा जैसी ‘सात्विक’ प्रवृतियां अपनाने के लिए प्रेरित करते थे। महर्षि कश्यप की असीम कृपा एवं अलौकिक ज्ञान के कारण ही राजा नरवाहनदत्त चक्रवर्ती राजा की श्रेष्ठ पदवी प्राप्त कर सका। महर्षि कश्यप अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप एवं तप के बल पर श्रेष्ठतम महानुभूतियों में गिने जाते थे।

महर्षि कश्यप ने समाज को एक नई दिशा देने के लिए ‘स्मृति-ग्रन्थ’ जैसे महान् ग्रन्थ की रचना की। इसके अलावा महर्षि कश्यप ने ‘कश्यप-संहिता’ की रचना करके तीनों लोकों में अमरता हासिल की। महर्षि कश्यप द्वारा संपूर्ण सृष्टि की सृजना में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान की यशोगाथा हमारे वेदों, पुराणों, स्मृतियों, उपनिषदों एवं अन्य अनेक धार्मिक साहित्यों में भरी पड़ी है। ऐसे महातेजस्वी, महाप्रतापी, महाविभूति, महायोगी, सप्तऋषियों में महाश्रेष्ठ व सृष्टि सृजक महर्षि कश्यप जी को पदम-पदम नमन् !

माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था।

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