ये लोग पहिले बड़े साहसी बबल पंरुष वाले थे इसही लिये यह जाति भारत के विधर्मी शत्रुओं की आँखों में खटकती थी अतएव इस जाति पर विपत्तियों का बड़ा पहाड़ टूटा जिसके बोझे से दबकर ये लोग अपनी यथार्थता को भूलगये और निरे एक बेगारी से रहगये उच्चता प्राप्त करने के साधन सब जाते रहे किन्तु सब प्रकार की दालता इनमें आगयी और लोग इनको एक शूद्र जाति समझने लगे पर यह टीक नहीं हुवा, अन्वेषण करने से पता चलता है कि यह बहुसंख्यक जाति भारतवर्ष में है इसमें अनेकों भेद क्षत्रियों के हैं और दूसरे दूसरे उच्चवर्णीय लोगों के भी हैं तथा कलियुग के प्रभाव से इनमें से कुछ समुदाय की उत्पत्ति उलट पुलट क्रम से पैदा हुई भी है यह सब मिश्रित समुदाय एक कहार जाति में हैं इनमें विशेषांश उच्चवर्षीय जा तियों का है पर इनमें विद्या बुद्धि व शिक्षा का अभाव होने से ये लोग सबही तरह के उत्तम मध्यम व निकृष्ट कार्य्य करने लगे
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Book Name - क्षत्रिय-वंश प्रदीप द्वितीय भाग
Book Link 🔗 -https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.271875
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