12 अगस्त 1919 को गांव बुटाना जिला सोनीपत (तत्कालीन जिला रोहतक) में श्री कुंदनलाल हस्तियाना (कश्यप) के घर जन्मे श्री मामन सिंह को बचपन से ही इतिहास जानने में रुचि थी। अपनी प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही उन्होंने देश और समाज की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना शुरू कर दिया था। इसी पहल को आगे बढ़ाते हुए श्री मामन सिंह ने स्कूल छोड़ दिया और 1936 में गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। ब्रिटिश शासकों ने श्री मामन सिंह को मई 1941 में अन्य आंदोलनकारियों के साथ जेल भेज दिया और डेढ़ साल की कैद के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। श्री मामन सिंह ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी बल्कि निजाम हैदराबाद के खिलाफ लड़ाई में भी हिस्सा लिया। कई आंदोलनकारियों के बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। लेकिन श्री मामन सिंह का संघर्ष अपने समाज में व्याप्त राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक असमानता को दूर करने के लिए जारी रहा। उनकी पत्नी श्रीमती। भारत देवी और उनके पुत्र श्री ओम प्रकाश, दिलावर सिंह, मेहताब सिंह और महेंद्र सिंह ने आजादी से पहले और बाद के संघर्ष में पूरा सहयोग दिया। उनके परिवार के सभी सदस्यों ने कश्यप समाज को हर तरह से एकजुट करने वाले कार्यकर्ताओं की सेवा करना अपना कर्तव्य समझा है। मैं पिछले 15 वर्षों से लेखक के निरंतर संपर्क में हूं। इन दिनों में मेरे जैसे कई कार्यकर्ता उनकी कार्यकुशलता से सीख रहे हैं। जब भी कोई साथी उपभोक्तावादी संस्कृति की इस दौड़ में भटकाव का शिकार हुआ है, तो उन्होंने अपने अनुभवों से उसे सही दिशा दी है। आजादी के आंदोलन के दौरान और उसके बाद भी गरीब और शोषित लोगों को एकजुट करने की उनकी विचारधारा विभिन्न जातियों में बंटे मजदूर वर्ग को यह दिखाने की रही है कि "एकता में ही शक्ति है"। उनका मानना है कि शोषण मुक्त समाज के लिए गरीब लोगों का संगठित, शिक्षित और संघर्षशील होना बहुत जरूरी है। उनके बलिदान को भारत सरकार ने स्वतंत्रता सेनानी की उपाधि देकर सम्मानित किया है और कई संगठनों ने डॉ. अंबेडकर शताब्दी समारोह के दौरान उन्हें सम्मानित किया है। इसी प्रकार कश्यप समाज के संगठन "हरियाणा कश्यप राजपूत सभा (रजि.)" के प्रतिनिधियों ने उन्हें संगठन का संरक्षक चुना।
आज 75 वर्ष की आयु में तथा लगातार गंभीर बीमारी से पीड़ित श्री मामन सिंह ने इस पुस्तक को लिखने में गहन अध्ययन तथा लेखन कार्य में इतना बौद्धिक कार्य किया है, जो किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है। लेखक की संतुष्टि इस बात में है कि इस पुस्तक पर किया गया कार्य कश्यप राजपूत समाज के मजदूरों, युवाओं, महिलाओं की भावनाओं को किस हद तक जगा पाता है, जो गतिहीन होती जा रही हैं।
दिनांक 8 जून 1994
कामरेड दरियाव सिंह कश्यप, महासचिव हरियाणा खेत मजदूर यूनियन (रजि.) राज्य कार्यालय, भगत सिंह स्मारक, पानीपत