मरीचि ऋषि द्वारा देवी कला की कोख से महातेजस्वी दो पुत्र 1. कश्यप और 2. अत्रि हुये। 1. कश्यप से सूर्य वंश और ब्रह्म वंश तथा 2. अत्रि से चन्द्र वंश का आगे चलकर विकास हुआ।
आदि पुरूष महर्षि कूर्म कश्यप त्रेता युग के प्रारम्भ में मारीचि कश्यप हुए हैं (वायु पुराण, 6.43)। सम्पूर्ण मानव जाति के आदि पुरुष कूर्म कश्यप अत्यन्त पुरातन काल में विद्यमान थे। कश्यप ऋषि प्राचीन वैदिक ऋषियों में प्रमुख ऋषि हैं जिनका उल्लेख एक बार ऋग्वेद में हुआ है। अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुप्रयुक्त है। इन्हें सर्वदा धार्मिक एंव रहस्यात्मक चरित्र वाला बतलाया गया है एंव अतिप्राचीन कहा गया है। एक बार समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर परशुराम ने वह कश्यप मुनि को दान कर दी। कश्यप मुनि ने कहा- "अब तुम मेरे देश में मत रहो।" अतः गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने रात को पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया। वे प्रति रात्रि में मन के समान तीव्र गमनशक्ति से महेंद्र पर्वत पर जाने लगे। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार उन्होंने विश्वकर्मभौवन नामक राजा का अभिषेक कराया था। ऐतरेय ब्राह्मणों ने कश्यपों का सम्बन्ध जनमेजय से बताया गया है। शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप कहा गया है
"स यत्कुर्मो नाम। प्रजापतिः प्रजा असृजत। यदसृजत् अकरोत् तद् यदकरोत् तस्मात् कूर्मः कश्यपो वै कूर्मस्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः कश्यपः"
महर्षि कश्यप एक महान विचारक, वक्ता, वैज्ञानिक, विद्वान, कलाकार, साहित्यकार, कवि और अत्यन्त कुशल कृषिकार थे। वे सफल साधक और महान समाजसेवी थे। वे महान तपस्वी और त्यागी थे। सद्गृहस्थ होने के साथ-साथ उन्होंने जनहित के लिए अपने जीवन को तपा-तपा कर अन्यन्त निर्मल और दीप्तिमान कर लिया था। किसी भी प्रकार का दोष उनमें शेष नहीं बचा था। महर्षि कूर्म ने कृषि और औषधियों के सम्बन्ध में वैज्ञानिक प्रयोग करके उसकी प्रगति के लिए अनेक प्रयास किये। इस दिशा में उन्हें सफलता भी मिली। उन्होंने कृषि के विकास के लिए जल में डूबी हुई भूमि को जल से बाहर निकालने का भी पुरूषार्थ किया। अपने पराक्रम और चतुराई से उन्होंने एक विशाल भूभाग पर अपना स्थायी आधिपत्य स्थापित कर लिया था। कश्यप द्वीप के नाम से उन्होंने मध्य एशिया में अपना उपनिवेश स्थापित किया था (महाभारत, भीष्म पर्व, 6.11) 1 कश्यप सागर (वर्तमान कैस्पियन सी) उनकी सीमा के भीतर था (हिस्ट्री ऑफ पर्सिया, खण्ड-1, पृष्ठ-28)। कश्यप सागर वर्तमान समय में ईरान के काश्यपी प्रदेश में है। महर्षि कश्यप ने कश्यप सागर के किनारे अनेक विकास कार्य सम्पन्न किये। इसी कश्यप सागर में ही पौराणिक समुद्र-मन्थन हुआ था। समुद्र मन्थन से लक्ष्मी
की उपलब्धि हुई थी। इस आख्यान का तात्पर्य यही है कि महर्षि कश्यप के निर्देश में आर्यजनों ने मध्य एशिया में अपने श्रम, चातुर्य और पराक्रम के सहारे सोने की खानों का पता लगाया और खुदाई करके बड़ी मात्रा में सोना प्राप्त किया (कूर्म पुराण, पूर्व भाग, 1.27-29) ।
कर्मशीलता और दूरदर्शिता के बल पर ही परमात्मा ने इस सृष्टि की रचना की, इसलिए उसे "कूर्म" और "कश्यप" कहा जाता है। "कूर्म" का शाब्दिक अर्थ "कर्मशील" और "कश्यप" का शाब्दिक अर्थ "दृष्टा" है। कर्म और ज्ञान दोनों की समन्वित शक्तियों के बल पर अभी भी सृष्टि का विकास हो रहा है। सृष्टिकर्ता को कूर्म कहा जाता है क्योंकि उसमें श्रेष्ठ कर्मशीलता और पराक्रम है। साथ ही वह कूर्म कहा जाता है क्योंकि उसमें श्रेष्ठ कर्मशीलता और पराक्रम है। साथ ही वह महान ज्ञानी, सर्वदृष्टा और सूक्ष्मदर्शी है, इसलिए उसे कश्यप भी कहा जाता है। इस प्रकार कूर्म और कश्यप दोनों एक ही शक्ति के दो पहलू हैं।
भगवद पुराण, मार्कण्डेय पुराण के अनुसार महर्षि कश्यप ने दक्ष वंश की 13 कन्याओं से विवाह किया, जिनके नाम हैं- 1. दिति, 2. दनु, 3. क्रोधवशा, 4. ताम्रा, 5. काष्ठा, 6. अरिष्टा, 7. सुरसा, 8. इला, 9. मुनि, 10. सुरभि, 11. शर्मा और 12. तिमिया 13. अदिति। ये 13 स्त्रियाँ 13 मानव जातियाँ बनीं और उनसे वंश का विस्तार होता गया।
कश्यप की 01. दिति नामक स्त्री के ज्येष्ठ पुत्र देव से देव जाति की स्थापना देवराज इन्द्र ने अपने पिता देव के नाम पर किया था। वैदिक काल से सुर और असुर एक ही थे। बाद में इनको अलग-अलग किया गया। कश्यप की 1. दिति नामक स्त्री के दूसरे पुत्र दैत्य से दैत्य जाति की स्थापना हुई।
कश्यप की 02. दनु नामक स्त्री से उत्पन्न वंश दानव वंश कहा गया।
कश्यप की 03. क्रोधवसा नामक स्त्री से उत्पन्न पुत्र का नाम नाग था और इनके वंशज नागवंशी कहलाये।
कश्यप की 04. ताम्रा नामक स्त्री से उत्पन्न वंश का नाम जटायुवंश और गरूणवंश था।
कश्यप की 05. काष्ठा नामक स्त्री से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए।
कश्यप की 06. अरिष्ठा नामक स्त्री से से गन्धर्व का जन्म हुआ।
कश्यप की 07. सुरसा नामक स्त्री से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए।
कोर्नाग्लिटेड माल
कश्यप की 08. इला नामक स्त्री से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ।
कश्यप की 09. मुनी नामक स्त्री से अप्सरागण का जन्म हुआ।
कश्यप की 10. सुरभि नामक स्त्री से भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पति की।
कश्यप की 11. शरमा नामक स्त्री से बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया।
कश्यप की 12. तिमिय नामक स्त्री से जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।
कश्यप की 13. अदिति नामक स्त्री से आदित्य (सूर्य) उत्पन्न हुए। अदिति, मनुर्भरतवंश के 45वीं पीढ़ी में उत्तानपाद शाखा के प्रजापति दक्ष की पुत्री थी (बृहद्वेता, 3.57)। प्राचीन विश्व में प्रमुख 2 वंश 1. सूर्य वंश और 2. चन्द्र वंश इन्हीं की सन्तानों से विकसित हुए।
प्राचीन विश्व में 2 वंश ही प्रमुख रूप से प्रचलित रहें हैं- 1. सूर्य वंश और 2. चन्द्र वंश। सूर्यवंश (सूर्य उपासक) और चन्द्रवंश (चन्द्र उपासक), इन दो वंशों से ही क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई है। सूर्यवंश के मूल पुरूष सूर्य तथा चन्द्रवंश के प्रथम पुरूष बुध दोनों के नाना मनुर्भरत दक्ष प्रजापति थे। ये दोनों आपस में मौसेरे भाई थे। इन वंशों के बीच आपस में वैवाहिक सम्बन्ध होते थे।
कश्यप-अदिति के आदित्य (सूर्य) इनकी चार पत्नीयाँ 1. तपसी 2. संज्ञा, 3. बड़वा और 4. छाया थी। चारो पत्नीयों से कुल 16 पुत्र (पत्नी संज्ञा से एक यम, पत्नी बड़वा से बारह पुत्र, पत्नी तपसी से एक और पत्नी छाया से दो पुत्र) हुये।
सूर्य की पत्नी 1. तपसी से एक पुत्र तपन सन्यासी हो गये।
सूर्य की पत्नी 2. संज्ञा से यम नामक पुत्र और यमी नामक पुत्री थी। यम की दो पत्नीयाँ 1. संध्या और 2. वसु थी। यम की पहली पत्नी संध्या से सांध्य (सीदीयन जाति) पुत्र हुये जिनके तीन पुत्र 1. हंस (जर्मन जाति) 2. नीप (नेपियन जाति) 3. पाल (पलास जाति)। यम की दूसरी पत्नी वसु से 8 पुत्र 1. धर 2. धुन 3. सोम 4. अह 5. अनिल 6. अनल 7. प्रत्यूष और 8. प्रभाष पैदा हुये जो अष्टवसु कहलाये। अष्टवसु धर की पत्नी उमा से महाप्रतापी पुरुष त्रयम्बक रूद्र पुत्र उत्पन्न हुए थे जिन्हें शिव की उपाधि मिली। यही रूद्र शिव, शिवदान (वर्तमान सूडान) प्रदेश के राजा थे जिन्हें दक्ष ने अपनी पुत्री उमा के विवाह में दान में
दिया था। यही उमा अपने पति का अपमान न सहन कर सकने के कारण अपने पिता के यज्ञ कुण्ड में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। इस पर क्रुद्ध होकर शिव ने इस वंश का नाश ही कर दिया था और यहीं से उमा का नाम सती हो गया। शिव गद्दी पर बैठने वाले सभी राजा शिव कहलायें। इस वंश में 12 चक्रवर्ती राजा हुये।
वंश- ब. ऐतिहासिक वंश 1. ब्रह्म वंश
सूर्य की पत्नी 3. बड़वा से जन्में 12 पुत्रों को जहाँ वेदों में आदित्य कहा गया वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है।
सूर्य की पत्नी 3. बड़वा के सबसे बड़े आदित्य वरूण से ही ब्रह्मवंश चला। वरूण की प्रथम पत्नी दैत्यराज हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या थी और द्वितीय पत्नी दानव राज पुलोमा की पुत्री थी। इसी ब्रह्म वंश में ही अंगिरा, भृगु उनके बाद बृहस्पति, शुक्र हुये। इनके वंश में ही दधीचि, सारस्वत, उर्व, जमदग्नि, परशुराम इत्यादि हुए।
वंश- ब. ऐतिहासिक वंश 2. सूर्य वंश
सूर्य की पत्नी 3. बड़वा के सबसे छोटे आदित्य विवस्वान से 7वें मनु वैवस्वत मनु हुये। महाराज मनु के दूसरी पीढ़ी में कुल 10 सन्तानें 1. इक्ष्वाकु, 2. नाभागारिष्ट, 3. कारूष, 4. धृष्ट, 5. नाभाग या नृग, 6. नरिश्यन्त, 7. धृषध, 8. प्रान्शु या कुशनाभ, 9. शर्याति और 10. पुत्री इला (इनका विवाह चन्द्र के पुत्र बुध से हुआ) हुयीं। महाराज मनु के चालीसवीं पीढ़ी में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न इत्यादि हुए। इकतालीसवीं पीढ़ी में राम के दो पुत्र (कुश, लव), लक्ष्मण के दो पुत्र (अंगद, चन्द्रकेतु), भरत के दो पुत्र (तक्ष, पुष्कल) व शत्रुध्न के दो पुत्र (सुबाहु, श्रुतसेन) हुये।
वंश- ब. ऐतिहासिक वंश 3. चन्द्र वंश
ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों 1. मन से मरीचि ऋषि द्वारा देवी कला की कोख से महातेजस्वी दो पुत्र 1. कश्यप और 2. अत्रि हुये। 1. कश्यप से सूर्य वंश और ब्रह्म वंश तथा 2. अत्रि से चन्द्र वंश का आगे चलकर विकास हुआ।
अत्रि के पुत्र चन्द्र हुये। मनुर्भरतवंश के 45वीं पीढ़ी में उत्तानपाद शाखा के प्रजापति दक्ष की 60 कन्याओं में से 27 कन्याओं का विवाह चन्द्र से हुआ था। इन 27 कन्याओं के नाम से 27 नक्षत्रों (1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आद्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. आश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वा फाल्गुनी 12. उत्तरा फाल्गुनी 13. हस्ति 14. चित्रा 15. स्वाति 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ़ 21. उत्तराषाढ़ 22. श्रवण 23. घनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वभाद्रपद 26. उत्तर भाद्रपद 27. रेवती) का नाम पड़ा जो आज तक प्रचलित है। चन्द्र के नाम पर चन्द्रवंश चला। चन्द्र बहुत ही विद्वान, भूगोलवेत्ता, सुन्दरतम व्यक्तित्व वाला तथा महान पराक्रमी था। साहित्यिक अभिलेखों के अनुसार सुन्दर होने के कारण देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा इस पर आसक्त हो गई, जिसे चन्द्र ने पत्नी बना लिया। इस कारण भयानक तारकामय संग्राम हुआ।
चन्द्रवंश के प्रमुख राजवंश के अतिरिक्त इन कन्याओं से कई कुल उत्पन्न हुए।
चन्द्र के पुत्र बुध हुये इनका विवाह सूर्य के पुत्र अर्यमा के पुत्र 7वें मनु-वैवस्वत
मनु की पुत्री इला से हुआ। चन्द्रवंश यहीं से चला। इला के नाम पर इसे ऐल वंश
भी कहा जाता है। सर्वप्रथम सूर्य की पत्नी 3. बड़वा के सबसे छोटे आदित्य 7वें
मनु वैवस्वत मनु अपने दामाद चन्द्र के पुत्र बुध के साथ ईरान के रास्ते
हिन्दूकुश पर्वत पार करके भारत भूमि पर आये। वैवस्वत मनु ने अपने पूर्वज सूर्य
के नाम पर सरयू नदी के किनारे सूर्य मण्डल की स्थापना किये और अपनी
राजधानी अवध अर्थात् वर्तमान भारत के अयोध्या में बनायी जिसे सूर्य मण्डल कहा
जाता है। इसी प्रकार बुध ने अपने पूर्वज के नाम से गंगा-यमुना के संगम के
पास प्रतिष्ठानपुरी में चन्द्र मण्डल की स्थापना कर अपनी राजधानी बनायी जो
वर्तमान में झुंसी-प्रयाग भारत के इलाहाबाद जनपद में है। सूर्य मण्डल और चन्द्र
मण्डल का संयुक्त नाम "आर्यावर्त" विख्यात हुआ। आर्यों का आगमन काल ई. पूर्व
4584 से 4500 ई.पूर्व के बीच माना जाता है। इसी समय के बीच विश्व में नदी घ
पाटी सभ्यता का अभ्युदय हुआ था। बुध के दो पुत्र सुद्युम्न और पुरूरवा हुये।
चन्द्र वंश के राजा ययाति की प्रथम पत्नी देवयानी (दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री) से दो पुत्र यदु (यदुवंश) और तुर्वसु (तुर्वसु) तथा दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा (दानव वंश के वृषपर्वा की पुत्री) से तीन पुत्र पुरू (पुरु वंश), अनु (अनुवंश) और द्रह्यु (द्रह्यु वंश) हुये। इन पाँच पुत्रों से पाँच शाखाएँ चली।
यदुवंश में कृष्ण और बलराम के वंशजों का भी काफी विस्तार हुआ, जिनके वंशज आज भी विद्यमान हैं। श्रीकृष्ण (पत्नियाँ 1. रुक्मिणी 2. कालिंदी 3. मित्रवृन्दा 4. सत्या 5. भद्रा 6. जाम्बवती 7. सुशीला 8. लक्ष्मण) के 10 पुत्र थे 1. प्रद्युम्न 2. चारुदेन 3. सुवेष्णा 4. सुषेण 5. चारुगुप्त 6. चारु चारुवाह 8. चारुविंद
भद्रचारू 10. चारुक थे। कृष्ण के बाद ब्रजनाभ मथुरा के राजा बने।
इस प्रकार चन्द्र के वंशजों से चन्द्रवंश का साम्राज्य बढ़ा जिनका सम्पूर्ण भारत में फैलाव होता गया। वर्तमान में इस चन्द्रवंश की अनेक शाखाएँ है। विझवनिया चन्देल वंश (विशवन क्षेत्र में आबाद होने के कारण विशवनिया या विझवनिया नाम पड़ा। इनकी एक शाखा विजयगढ़ क्षेत्र सोनभद्र, दूसरी जौनपुर जिले के सुजानगंज क्षेत्र के आस-पास 15 कि.मी. क्षेत्र में आबाद हैं। इनकी दो मुख्य तालुका खपड़हा और बनसफा जौनपुर में है। इसी खपड़हा से श्री लव कुश सिंह "विश्वमानव" के पूर्वज नियामतपुर कलाँ, शेरपुर, बगही, चन्दापुर, चुनार क्षेत्र, मीरजापुर में गये थे। श्री लव कुश सिंह "विश्वमानव" उनके तेरहवें पीढ़ी के हैं।)
कश्यप की 1. दिति नामक स्त्री के दूसरे पुत्र दैत्य से दैत्य जाति की स्थापना हुई। दैत्यों की एक शाखा मय सभ्यता के रूप में जानी जाती थी। मय का राज्य मयेरिका जाना जाता था जिसकी राजधानी मयसिको तथा वर्तमान नाम अमेरिका हो गया। दूसरी शाखा मेसोपोटामिया तथा तीसरी शाखा बेबीलोन में थी। जो असुर सभ्यता के नाम से जानी जाती थी। असुरों की राजधानी असीरिया थी। दिति के गर्भ से परम् दुर्जय हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा की। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जोकि मरून्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निःसंतान रहे। देवराज इन्द्र ने इन्हें अपने समान ही देवता बना लिया। जबकि हिरण्याकश्यपु को चार पुत्रों अनुहल्लाद, हल्लाद, परम भक्त प्रहल्लाद, संहल्लाद आदि की प्राप्ति हुई। इसी वंश में राजा बलि, बाणासुर, कुंभ, निकुंभ थे। राजा बलि, प्रहल्लाद के पुत्र विरोचन के पुत्र थे और बलि के पुत्र का नाम वाणासुर था। बलि का राज्य वर्तमान केरल प्रदेश में था जिसे पाताल लोक कहा गया है।
इसी वंश के सुमाली की चार पुत्रियों (1. कैकसी, 2. कुंभीनरसी, 3. राका 4. पुष्पकटा) का विवाह पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा (रावण के पिता) से हुआ था। ऋषि भृगु और हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु थे।
शुक्राचार्य की पुत्री का नाम देवयानी व पुत्र शंद और अर्मक थे। देवयानी का विवाह चन्द्रवंशी राजा ययाति से हुआ था।
ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में से चौथे कान से पुलस्त्य थे। पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा थे। विश्रवा का विवाह सुमाली की चार कन्याओं से हुआ था जिनकी 1. कैकसी रानी से रावण, 2. कुम्भीनसी रानी से कुम्भकर्ण, 3. राका रानी से विभीषण और 4. पुष्पोत्कटा रानी से सूपर्णखा का जन्म हुआ था। इस प्रकार रावण के पिता शुद्ध आर्य वंश और माता शुद्ध दैत्य वंश की थी।
Book 📚 Name - Mein satyakashi se kalki mahavtaar bol raha hun: Adhyanthik evum darshanik ...
मैं सत्यकाभी से कल्कि महाअवतार बोल रहा हूँ
लव कुश सिंह "विश्वमानव" द्वारा
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