महर्षि कश्यप जी से ही क्षत्रिय वर्ण मै काश्यप गोत्र की शुरुवात हुए थी
इस के हमे परमान मिलते हैं
1- सम्राट महर्षि कश्यप (सप्तद्वीप-सप्तसमुद्र )और परशुराम जी (क्षत्रिय वंश की पुर्नस्थापना)
क्षत्रियों का पुनः उद्धारक - ऋषि कश्यप
जब यज्ञ समाप्त हो गया और सारी पृथ्वी परशुराम जी ने ब्राह्मणों को बांट दी तथा सारे भूण्डल के एक छत्र सम्राट भगवान कश्यप बन गये तो कश्यप जी ने विचार किया, वे सोचने लगे कि अगर ये ब्राह्मण परशुराम परशु लिये पृथ्वी पर ऐसे ही घूमते रहे तो न जाने कब किस पर क्रुद्ध हो जायें। यह तो परम त्यागी वैरागी है। इसे किसी से लेना देना तो है नहीं। जो भी अधर्मी व कुकर्मी इसे दीख पडेगा उसी का संहार कर डालेंगे। इसे कोई रोकने या टोकने वाला तो है नहीं। केवल मेरी ही बात मानता है। दूसरे जब मैं सारी पृथ्वी का सप्तद्वीप-सप्तसमुद्र तक सम्राट बन गया हूँ तो समाज की व्यवस्था भी मेरे द्वारा की जानी है। वैसे तो ये कहेगा कुछ नहीं परन्तु ब्राह्मण राज्य भी नहीं करेंगे। क्षत्रियों को ही राजा बनाया जायेगा। कहीं से खोज करके क्षत्रियों को लाया जाना ही आवश्यक है। सभी क्षत्रिय तो मरे नहीं, वे तो छुपकर गुफाओं, शूद्र कबीलों, ऋषि मुनियों के आश्रमों में रह रहे हैं। ऋषि मुनियों ने दया करके कुछ क्षत्रियों को छिपाकर अपने आश्रमों में रखा हुआ है। उन्हें राजा बना देंगे। यदि क्षत्रिय पनुः राजा बनाये जायेंगे तो ये श्रेष्ठ ब्राह्मण उनको फिर मार डालेगा। अतः अब परशुराम को इस पृथ्वी पर नहीं रहना चाहिये। निस्सन्देह ये भगवान विष्णु हैं। अजर अमर हैं। इन्हें केवल शिव या नारायण ही जानते हैं। ये अपनी लीला करते आये हैं। भूमि भार उतर गया है। अब इनकी आवश्यकता नहीं। सब ओर परम शान्ति सौहार्द व प्यार का वातावरण है। यही सुअवसर है इसे गंवाना नहीं चाहिये। भगवान कश्यप ने अवसर गंवाया नही.. जब यज्ञ समाप्त हो गया और सारी पृथ्वी परशुराम जी ने ब्राह्मणों को बांट दी तथा सारे भूण्डल के एक छत्र सम्राट भगवान कश्यप बन गये तो कश्यप जी ने विचार किया, परशुराम को इस पृथ्वी पर नहीं रहना चाहिये।
कश्यप जी ने भी विशुद्ध वंशीय क्षत्राणियों से धर्मपूर्वक स्वयं सन्तानें उत्पन्न की। वे काश्यप गोत्रिय क्षत्रिय परम पराक्रमी हुए। उन सबने इस पृथ्वी का धर्मपूर्वक पालन किया। समाचार पुनः सुनकर गुप्त क्षत्रिय अब प्रकट होने लगे। तब पृथ्वी ने अपनी रक्षा के लिये कश्यप जी को प्रसन्न करके वरदान मांगा, 'ब्रह्मन्, मैंने बहुत से क्षत्रियों को स्त्रियों में छिपा रखा है, वे मेरी रक्षा करें। कुछ क्षत्रिय राजा स्त्रियों का कवच बनाकर उनके भीतर छिप गये थे। अब वे पुनः प्रकट हुए। कुछ ही काल में क्षत्रियों के विशुद्ध वंश स्थापित हो गये। राजा रत्नसेन के दधीच ऋषि ने पाँचों बालको जयसेन, बिन्दुमान्, विशाल, चन्द्रशाल और भरत का पालन किया, वे आश्रम में ऋषि पुत्रों के साथ क्रीड़ा करने लगे। राजा चंद्रसेन की स्त्री गर्भवती थी, तो वह दाल्भ्य ऋषि के आश्रम में ऋषि की शरण में चली गई, ऋषि ने उसका संरक्षण किया, यह गर्भस्थ बालक क्षत्रियवीर्य से क्षत्रियाणी के उत्पन्न होने के कारण क्षत्रियधर्मी हुआ परन्तु दाल्भ्य ऋषि ने उसको क्षत्रिय धर्म से पृथक् कर चित्रगुप्त कायस्थ के धर्म में किया। उसके वंश में जो उत्पन्न हुए वह दाल्भ्य गोत्री कायस्थ हुए। ये राजपूत बालक भिन्न-भिन्न स्थानों पर मौजूद हैं, यदि ये मेरी रक्षा करें तो मैं स्थिर रह सकती हूँ। इन बेचारों के बाप-दादे परशुराम जी के द्वारा युद्ध में मारे गये हैं। मैं धर्म की मर्यादा को लांघने वाले क्षत्रिय द्वारा अपनी रक्षा नहीं चाहती। धार्मिक पुरूष के संरक्षण में ही रहूँगी। आप शीघ्र उसका प्रबन्ध कीजिये। पृथ्वी की प्रार्थना सुनकर कश्यप जी ने ऊपर बताये हुए राजकुमारों को भिन्न-भिन्न स्थानों से एकत्रित किया और उन्हें पृथ्वी के विभिन्न देशों में राज्य पर अभिषिक्त कर दिया। आज जिनके वंश कायम हैं, ये उन्हीं के पुत्र-पौत्रों में से हैं। भगवान किसी का वंश समाप्त नहीं होने देते। सबके आधार तो भगवान ही हैं। जब भगवान कश्यप ने पुनः क्षत्रियों को राजा बना दिया वे राज्य करने में कैसे सफल हुए क्योंकि कुछ राजा तो बहुत ही कम आयु के थे। वे राजकाल करना क्या जानते थे ? जब भगवान कश्यप जी ने सभी जगह क्षत्रियों को राजा बना दिया तो उनकी रक्षा व सरंक्षण का उत्तर दायित्व परम विद्वान ब्राह्मणों को सौंप दिया। वे सभी राजा पहले की ही भाँति ब्राह्मणों की आज्ञा से धर्मपूर्वक पृथ्वी का पालन करने लगे। इससे सर्वत्र शान्ति का साम्राज्य हो गया। पृथ्वी पर पुनः क्षत्रियवंश प्रतिष्ठित हुआ। यह सब भगवान कश्यप जी की कृपा थी। इस सारे भू-मण्डल को कश्यप जी ने भगवान परशुराम जी से संकल्प में दान लिया थी, उसी सारी पृथ्वी को महर्षि ने पुनः क्षत्रियों को बांट कर राजा बना दिया। परशुराम जी भी दानवीर हैं और कश्यप जी तो दानी-त्यागी-वैरागी थे ही।
इस प्रकार भगवान विष्णु ने स्वयं अवतार ग्रहण करके भूमि का भार उतारा, दुष्ट क्षत्रियों के भार से दबी पृथ्वी को उनके भ्रष्टाचार, अन्यायों व पापों से मुक्त किया। धर्म की पुनः स्थापना की, साधु सन्त, गो, ब्राह्मण, देवताओं के कष्ट मिटाये तथा अब भी वे महेन्द्र पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं। वे अजर अमर हैं। उनके पराक्रम, शूरवीरता, धीरता, गम्भीरता, दानवीरता तथा महानता के गुण अद्यावधि त्रिलोकी में गाये जाते हैं। भगवान श्री परशुराम की लीलाओं का वर्णन तथा उनके यशोज्ञान की कथा सर्वत्र गाई व सुनाई जाती है। वे समय समय पर अपने भक्तों को दर्शन देकर कृतार्थ करते हैं।
2 - कश्यप ऋषि ने गोत्र की कामना की
कश्यप के दिति से दो पुत्र हुए जिनका नाम हिरण्य, कश्यपु और हिरण्याक्ष है। दन में कश्यप से १०० पुत्र पैदा हुए जिनमें विप्रचित्त प्रधान थाकश्यप ऋषि की सन्तान संक्षेप में कही। इनका पुत्र और पौत्रों का वंश तो बहुत सा है। कश्यप ने गोत्र की कामना से फिर तप किया कि गोत्र को चलाने वाला पुत्र मुझे प्राप्त हो। तब उनके ब्रह्मवादी दो पुत्र हुए। इनका नाम वत्सर और असित हुआ। वत्सर ने नैबुध और रैम्भ दो पुत्र हुए। असित से एकपर्णा नामक स्त्री में ब्रह्मिष्ठ पैदा हुआ।
Book 📚 Name -
1 _ भक्ति एवं शक्ति के प्रतीक : भगवान परशुराम Bhakti evam Shakti ke Prateek
By डॉ० विक्रम शर्मा (Dr. Vikram Sharma)
2_ Sankshipta Linga Maha Purana संक्षिप्त लिंग महा पुराणम्- केवल हिंदी
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