धींवर एवं झीमर जातिगत नामांकण अन्तर तथा इनका मूल स्थान

 


बुजुर्गों के कथनानुसार जब परम् पूज्य बाबा कालू जी महाराज ने नारद को गुरु ज्ञान दिया था और उसे लख चौरासी योनियां भोग ब्रम्ह पद प्राप्त करने की विधि बताई थी। तब नारद की यह करतूत देख सभी देवता चकित रह गये और नारद को अपनाना पड़ा, अन्यथा उसे कोई निकट बैठने नहीं देता था। नारद द्वारा जब उनके गुरु का नाम सुना तब देवताओं ने उनकी • सूझ-बूझ और अकलमन्दी के आधार पर कालू जी की धींवर (अत्यन्त बुद्धिमान) कहके सराहना की और उनको कालू की जगह कण्व नामांकण ऋषि पद दिया था। इस प्रकार धींवर नाम प्रचलित हुआ बताते है। परन्तु आधुनिक विचारधारा के अध्ययन कर्त्ताओं का यह अनुमान सत्य प्रतीत होता है कि प्राचीन चन्द्र वंशीय महाराजा के नाम से बिगड़ते-बिगड़ते झीमर जातिगत उपनाम प्रचलित हुआ ।


हस्थनापुर व अजयमीढ़ का जिक्र प्राचीन राजा, महाराजाओं के वृतान्त में हो चुका । अजय मीढ़ का जन्म स्थान हस्थनापुर था तथा जितनी लम्बी वंश बैल अजय मीढ़ की चली इतनी किसी अन्य क्षत्री वंश की नहीं चल पाई, कहते हैं कभी सारा उत्तर भारत इनकी छत्र-छाया में रहा है। प्राचीन काल से लेकर महाभारत के बाद भी राजपूतों तक किसी न किसी राजवंश के नाम से उभर कर सामने आते रहे हैं। जिनके शाखा-कुल गौत्रों आदि का कोई अनुमान नहीं इसलिये कह सकते हैं कि हस्थनापुर के मूल अधिकारी झींवर थे। लगता है इस कारण देश के अन्य भागों से उत्तर प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली के आस-पास अब भी इनकी आबादी अधिक है। इनके गुड़-खांडसारी, फल-फ्रूट, सब्जी उत्पादन, नाव संचालन, टोकरे आदि बनाने के कार्यों को देख इन्हीं जैसे पिछड़े हुए अन्य देशी, विदेशी, क्षत्री, वैश्य, बाम्हण आदि भी इनमें मिलते रहे। तथा यह लोग भी दूसरी कार्यरूपी जातियों में जाते रहे। इसीलिये एक-एक जाति के गौत्र कई कई जातियों में पाये जाते है। सनै-सनैः सभी जातियों में ऊंच-नीच अलगाव वादी भावनाओं के फलस्वरूप उप जातियां बनने लगी, जैसे हम अपने समुदाय में कहार, महार, बाथम, बथवाहा, बुड़ना, मल्लाह, निषाद आदि उपजातियां देखते हैं।

समय-समय पर महापुरुषों, महान आत्माओं ने इस अलगाववादी जातिवाद को खत्म करके पुनः वर्ण व्यवस्था की भांति सार्वजनिक संगठन एवं संघ बनाने का प्रयत्न किया था। जैसे महा ऋषि कण्व, महाबीर भगवान, महात्मा बुद्ध इत्यादि-इत्यादि का नाम लिया जाता है।


आज के दौर में जिस प्रकार झींवर, धींवर आदि समुदाय संगठित करने का प्रयत्न जारी है इसी प्रकार पहले भी महापुरुषों द्वारा कश्यप नाम से इन्हें संगठित करने का प्रयत्न किया प्रतीत होता है। इस विषय में कहते हैं कि किसी समय महाऋषि कण्व मिश्र देश गये थे जहां बहुत से प्राचीन क्षत्री, वैश्य क्रिया विहीन हुए शूद्रों से भी निम्न मलेच्छ आदि हुए बैठे थे। वहां उन्होंने भारतीय प्राचीन धर्म एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया जिसके फलस्वरूप उनके साथ दस सहंस्त्र शिष्य भारतीय शिक्षा प्राप्त करने भारत आये थे और वह धींवर, झींवर आदि भारतीय जातियों में मिलके कश्यप वंशी काश्यपूत कहलाये थे। जिसका कुछ वृतान्त भविष्य पुराण (भाग एक) में मिलता है, इस विषय का किसी महानुभाव द्वारा भेजा गया श्लोक :


कश्यप, कण्व विप्र ऋषि मिश्र देश : गतो पुरा ।

कठं कुरुवन्तु कारुका झींवर बाढ़ी तक्षका । ।

दशः साहन्त्र आन दित्या च भारतीय भाषा शिक्षयेन ।

धींवरे मेल दित्या च तस्मात कश्यप स्मृतयान ।।

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