🔱 "कश्यप ऋषि की नाग वंश शाखा: नागलोक के स्वामी, शिवभक्त वासुकि और उलूपी की गाथा"

 


नाग जाति की उत्पत्ति और उनकी कन्याओं के बारे में रोचक जानकारी....

* नागों के अष्टकुल 

* नागकन्या 

* नागलोक

* नाग कुल की भूमि 

* नाग और नाग जाति 

* महाभारत में नागों की कहानी

* भगवान शिव के गले में लिपटे नाग के 10 रहस्य

भारत में पाई जाने वाली नाग जातियों और नाग के बारे में बहुत ज्यादा विरोधाभास नहीं है। भारत में आज नाग, सपेरा या कालबेलियों की जाति निवास करती है। यह भी सभी कश्यप ऋषि की संतानें हैं। नाग और सर्प में भेद है। पुराणों के अनुसार प्राचीनकाल में नागों पर आधारित नाग प्रजाति के मानव कश्मीर में निवास करते थे। बाद में ये सभी नागकुल के लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ में आकर बस गए थे, जो उस काल में दंडकारण्य कहलाता था। सपेरा जाति का कालबेलिया नृत्य आज भी लोकप्रिय है।

* नागों के अष्टकुल ....

कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें 8 पुत्र मिले जिनके नाम क्रमश : इस प्रकार हैं- 1.अनंत (शेष), 2.वासुकि, 3.तक्षक, 4.कर्कोटक, 5.पद्म, 6.महापद्म, 7.शंख और 8.कुलिक। इन्हें ही नागों का प्रमुख अष्टकुल कहा जाता है। कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमश: इस प्रकार हैं:- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय। कुछ पुराणों अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला। शेषनाग ने भगवान विष्णु तो उनके छोटे भाई वासुकी ने शिवजी का सेवक बनना स्वीकार किया था।

उल्लेखनीय है कि नाग और सर्प में फर्क है। सभी नाग कद्रू के पुत्र थे जबकि सर्प क्रोधवशा के। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप या सर्प, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।

भारत में उपरोक्त आठों के कुल का ही क्रमश: विस्तार हुआ जिनमें निम्न नागवंशी रहे हैं- नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।

अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है। अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।

नागकन्या .....

कुंती पुत्र अर्जुन ने पाताल लोक की एक नागकन्या से विवाह किया था जिसका नाम उलूपी था। वह विधवा थी। अर्जुन से विवाह करने के पहले उलूपी का विवाह एक बाग से हुआ था जिसको गरूड़ ने खा लिया था। अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र थे अरावन जिनका दक्षिण भारत में मंदिर है और हिजड़े लोग उनको अपना पति मानते हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह भी एक नागकन्या से ही हुआ था जिसका नाम अहिलवती था और जिसका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था।

नागलोक....

सात पाताल है- 1. अतल, 2. वितल, 3. सुतल, 4. रसातल, 5. तलातल, 6. महातल और 7. पाताल।....इनमें से महातल में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का 'क्रोधवश' नामक एक समुदाय रहता है। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग रहते हैं। उनके बड़े-बड़े फन हैं। वासुकी नाग भी पाताल लोक के नागलोक में रहता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार पाताल लोक में कहीं एक जगह नागलोक था, जहां मानव आकृति में नाग रहते थे। कहते हैं कि 7 तरह के पाताल में से एक महातल में ही नागलोक बसा था, जहां कश्यप की पत्नी कद्रू और क्रोधवशा से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले नाग और सर्पों का एक समुदाय रहता था। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग थे। 

*नाग कुल की भूमि .....

यह सभी नाग को पूजने वाले नागकुल थे इसीलिए उन्होंने नागों की प्रजातियों पर अपने कुल का नाम रखा। जैसे तक्षक नाग के नाम पर एक व्यक्ति जिसने अपना 'तक्षक' कुल चलाया। उक्त व्यक्ति का नाम भी तक्षक था जिसने राजा परीक्षित की हत्या कर दी थी। बाद में परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने तक्षक से बदला लिया था।

 'नागा आदिवासी' का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।

पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।

*नाग और नाग जाति....

जिस तरह सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशी माने गए हैं उसी तरह नागवंशियों की भी प्राचीन परंपरा रही है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। ये लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए। कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं। एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।

*शहर और गांव...

नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव 'नाग' शब्द पर आधारित हैं। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महाराष्ट्र से महाराष्ट्र हो गया। महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी। इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में 'नागदाह' नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे। उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। नगा या नागालैंड को क्यों नहीं नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है।

*महाभारत में नागों की कहानी....

महाभारत नागों की भी कहानी होती है। हमें इतिहास राजाओं की कहानी की तरह पढ़ाया जाता है। टीवी पर दिखाते समय शायद ये दिक्कत हुई कि ऐसे ही सिस्टम में पढ़े-लिखे आज के लोगों ने जब महाभारत को दर्शाया तो उसे किसी पांडव और कौरवों के राजा बनने के लिए हुई लड़ाई के तौर पर दर्शाया। एक किताब के तौर पर जो भृगु महाभारत में हर जगह हैं, उनका कहीं जिक्र तक टीवी के जरिये महाभारत समझने की कोशिश करने वालों को दिखाई-सुनाई ही नहीं दिया। महाभारत में नाग बिलकुल शुरू में ही आ जाते हैं।

उत्तंक नाम का एक छात्र जब अपनी गुरुदक्षिणा के लिए रानी से उनके कुंडल मांगने पहुँचता है, तभी वो उसे सावधान करती हैं कि नागराज कई दिन से इन कुण्डलों पर निगाह जमाये बैठा है। वो गरीब छात्र की गुरुदक्षिणा का इंतजाम तो करती हैं, मगर साथ ही उसे चोरी से सावधान भी कर देती हैं। सावधानी के वाबजूद तक्षक कुण्डल चुरा कर भाग जाता है। छात्र बेचारा पीछा करता हुआ पाताल पहुंचा, आखिर जैसे तैसे कुण्डल लेकर वापस गुरु माता के पास लौटता है। इस एक कहानी में कम से कम पांच नीति कथाएँ होती हैं, मगर फ़िलहाल उनसे ध्यान हटाकर हम नागों पर ही ध्यान रखेंगे।

वापस आते हुए, नागों का दूसरा बड़ा जिक्र कृष्ण के कालिया दमन, और भीम को विष देकर नदी में फेंके जाने के समय आता है। यमुना के इलाकों में नागों का कब्ज़ा था इस से ये बात भी समझ आती है। कृष्ण ने पांडवों के सहयोग से उन्हें इस इलाके से दूर किया था। कृष्ण और अर्जुन बाद में खांडवप्रस्थ को भी नागों से खाली करवा लेते हैं। कृष्ण को चक्र चलाना तो काफी पहले ही परशुराम सिखा चुके होते हैं, लेकिन अग्नि से उन्हें यहीं दिव्यास्त्र मिलते हैं। सुदर्शन चक्र भी अग्नि ने दिया, और अर्जुन को गांडीव भी अग्नि ने इसी समय दिया।

इस खांडव वन को जलाने की लड़ाई में अग्नि की सहायता जहाँ कृष्ण-अर्जुन कर रहे थे वहीँ वहां रहने वाले नागों की रक्षा इंद्र कर रहे थे। इंद्र नागों को बचा नहीं पाए और सिर्फ तक्षक का एक पुत्र अश्वसेन निकल के भाग पाने में कामयाब हुआ। बाकी वहां रहने वाले तक्षक के वंशज नाग वहीँ मारे गए। इस दुश्मनी को ना अश्वसेन भूला ना तक्षक। इस खांडव वन को इन्द्रप्रस्थ बनाने से थोड़ा ही पहले अर्जुन का नागकुमारी उलूपी ने अपहरण कर लिया था। इस वैवाहिक सम्बन्ध के कारण अर्जुन को पानी के अन्दर ना हारने का भी वरदान था।

नागों से इस दोस्ती-दुश्मनी का नतीजा महाभारत की लड़ाई में भी दिखेगा। युद्ध में जब कर्ण अर्जुन से लड़ रहे होते हैं तो यही खाण्डववन वाला अश्वसेन कर्ण के तरकश में जा घुसा। कर्ण के बाण से चिपक के वो अर्जुन तक पहुँच जाना चाहता था, लेकिन कृष्ण अपने अंगूठे से रथ को दबा देते हैं। इस बार इंद्र, जो कि कभी नागों की सहायता कर रहे थे, उन्हीं का दिया मुकुट अर्जुन के काम आ जाता है। कर्ण का तीर रथ के दब जाने के कारण अभेद्य मुकुट से टकराकर टूट गया और अश्वसेन अर्जुन तक नहीं पहुँच पाया। अश्वसेन दोबारा भी कर्ण के पास उसके तीर पर सवार होने का प्रस्ताव लेकर पहुंचा था, लेकिन कर्ण नागों की मदद को ओछी हरकत मानकर इनकार कर देता है।

युद्ध के अंत में जब दुर्योधन तालाब में छुपा होता है और पांडव उसे ढूंढ निकालते हैं तब भी दुर्योधन नागों की वजह से बाहर आता है। अगर अर्जुन पानी में उतरता तो दुर्योधन का मारा जाना तय था, जबकि बाहर निकलकर भीम से द्वन्द युद्ध में दुर्योधन के पास विजय की थोड़ी संभावना बनती थी। इसलिए दुर्योधन ने बाहर आना चुना था। नागों ने युद्ध के ख़त्म होने पर युद्ध में शामिल हुए अन्य लोगों की तरह शत्रुता की भावना भी नहीं छोड़ी थी। कई साल बाद जब अर्जुन के पोते को शाप मिलता है तो तक्षक उसे डसने पहुँच जाता है। कोई उसे बचा ना पाए इसलिए काश्यप नाम के वैद्य (ऋषि नहीं, ये दुसरे थे) को वो धन इत्यादि देकर दूसरी दिशा में रवाना भी कर देता है।

शुरू में जिस उत्तंक का जिक्र है वो भृगुकुल के ऋषि धौम्य के शिष्य वेद के शिष्य थे। महाभारत की शुरुआत में ही धौम्य ने उनके शेष पर विजयी होने की भविष्यवाणी की थी। महाभारत के अंतिम हिस्से में जन्मजेय के सर्प यज्ञ में उत्तंक ही पुरोहित थे।

भगवान शिव के गले में लिपटे नाग के 10 रहस्य...

भगवान शिव के गले में लिपटे नाग का नाम वासुकि है।

वासुकि नाग के पिता ऋषि कश्यप और माता कद्रू थीं।

वासुकि नाग के बड़े भाई का नाभ शेष (अनंत) और अन्य भाइयों का नाम तक्षक, पिंगला और कर्कोटक आदि था।

शेष नाग विष्णु के सेवक तो वासुकि शिव के सेवक बनें। वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था।

 मान्यता है कि वासुकि का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था। यह भी कहा जाता है कि वासुकी को नागलोक का राजा माना गया है।

 भगवान शिव के साथ ही वासुकि नाग की पूजा होती है। इसीलिए नागपंचमी पर शेषनाग के बाद वासुकि नाग की पूजा करना भी जरूरी है। 

समुद्र मंथन के दौरान वासुकि नाग को ही रस्सी के रूप में मेरू पर्वत के चारों और लपेटकर मंथन किया गया था, जिसके चलते उनका संपूर्ण शरीर लहूलुहान हो गया था। 

 माना जाता है कि वासुकि के कारण ही नाग जाति के लोगों ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था।

वासुकी ने ही कुंति पुत्र भीम को दस हजार हाथियों के बल प्राप्ति का वरदान दिया था। जब भीम को दुर्योधन ने धोखे से विष पिलाकर गंगा नदी में फेंक दिया था तब भीम नागलोक पहुंच गए थे। वहां पर भीम के नानाजी ने वासुकि को बताया कि यह कौन है तब वासुनिक नाग ने भीष का विष उतारा और उसे दस हाजार हथियों का बल प्रदान किया।

 वासुकी के सिर पर ही नागमणि होती थी। जब भगवान श्री कृष्ण को कंस की जेल से चुपचाप वसुदेव उन्हें गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते में जोरदार बारिश हो रही थी। इसी बारिश और यमुना के उफान से वासुकी नाग ने ही श्री कृष्ण की रक्षा की थी। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि शेषनाग ने ऐसा किया था।


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