कश्यप निषाद समाज के लोगों ने आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर भाग लिया है और सर्वसमाज के लोगों में संघर्ष का जज्बा पैदा किया। ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी थे पंजाब के मास्टर मोता सिंह कश्यप जी।
स्व० मोता सिंह कश्यप का जन्म गांव पतारा जिला जालंधर में 28 फरवरी 1888 श्री गोपाल कश्यप जी के घर हुआ था। इनकी माता जी का नाम रेल्ली देवी था। प्राथमिक शिक्षा इन्होंने गांव के स्कूल में ही प्राप्त करी और दसवी के बाद पढ़ाई के साथ-2 जालंधर के निजी स्कूलो में अध्यापक का काम करने लगे। पंजाब यूनिवर्सिटी से इन्होंने बी.ए। अंग्रेजी के साथ-2 पंजाबी भाषा में ज्ञानी और फारसी भाषा में मुंशा-ए-फाजिल की उपाधि प्राप्त करी। सन् 1914-15 में मास्टर मोता सिंह कश्यप जी संत सिंह सुक्खा सिंह मिडल स्कूल, अमृतसर में बतौर हैडमास्टर नौकरी करने लगे। मास्टर मोता सिंह कश्यप जी ने कई अन्य स्कूलो में भी बतौर अध्यापक सेवाएं दी जिनमे मालवा का हाई स्कूल, खालसा हाई स्कूल दमदम साहिब, खालसा स्कूल फिरोजपुर आदि प्रमुख थे।
1918-19 में मोता सिंह कश्यप जी अध्यापन कार्य दमनकारी रॉलेट एक्ट के विरोध में आजादी की जंग में शामिल हों गए और 11 अप्रैल 1919 को शाही मस्जिद लाहौर में एक बड़ी जनसभा में अंग्रेजो की दमनकारी नीतियों के विरोध • में जंग का ऐलान किया। 1919 की जलियांवाला बाग घटना के बाद उन्हें जनता को उकसाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। उन दिनों जेल में सिखो को पगड़ी पहनने की इजाजत नहीं थी लेकिन मास्टर जी ने जेल अधिकारियो को पगड़ी को हाथ नहीं लगाने दिया और जेल में भूख हड़ताल कर दी। अंग्रेजो को झुकना पड़ा और इसके बाद से सिख बंदियों को पगड़ी पहनने की इजाजत मिली।
अक्टूबर 1920 में हुई सेन्ट्रल सिख लीग के सम्मलेन में मास्टर मोता सिंह जी ने भीष्म प्रतिज्ञा करी कि जब तक भारत आजाद नहीं होगा वो पैरो में जूते नहीं डालेगे। मास्टर मोता सिंह जी 1947 तक 27 साल नंगे पैर आजादी की लड़ाई लड़ते रहे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड, उसके बाद 26 जनवरी 1921 को तरनतारन में संगत पर हमले और फिर 20 फरवरी 1921 ननकाना साहब में हुए दंगो के बाद मास्टर मोता सिंह जी ने हथियारबंद हो लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। मार्च 1921 को होशियारपुर में हुई सिख एजुकेशनल कॉन्फ्रेंस में मास्टर मोता सिंह ने गरम दल के नेताओ से मुलाकात की और निर्णय लिया की बिना हथियार आजादी नहीं मिलेगी । मास्टर मोता सिंह जी ने जत्थेदार किशन सिंह के साथ मिलकर श्बब्बर अकाली लहरश् के नाम से मोर्चा बनाया और गाँव-2 शहर-2 जाकर प्रचार करने लगे । इनका मोर्चा जहाँ भी जाता हथियारबंद होकर जाता था, पुलिस में मास्टर जी और उनके मोर्चे की दहशत थी, सरेआम उन्हें पकड़ने से डरती थी, ब्रिटिश पुलिस ने मास्टर जी को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर अंग्रेज पुलिस ने उस समय 1000 रुपये का ईनाम रखा दियाथा।
ननकाना साहब कांड और तरनतारन में हुए दंगो के दोषियों को सजा देने के लिए मोता सिंह ने साथियो के साथ मिलकर योजना बनाई थी । उन्हीने योजना अनुसार मई 1921 में उन्होंने 7 बंदूके अम्बाला एयरफोर्स आर्मरी से चुराए लेकिन बदकिस्मती से उनके दो साथी बेल सिंह और गंडा सिंह 23 मई 1921 को लाहौर स्टेसन पर चुराए हथियारों सहित पकडे गए और उनकी योजना फैल हो गयी। इस घटना को पंजाब इतिहास में प्रथम अकाली 'ड्यंत्र के नाम से भी जाना जाता है। (1923 में सरदार गुरमुख सिंह की लिखी पुस्तक में इस घटना का विस्तार से इस जिक्र है यह किताब अंग्रेजो ने जब्त कर अपने साथ ले गए थे जिसे कुछ साल पहले जालंधर की देश भक्त कमेटी से जुड़े ईजी० देवराज जी लन्दन से लाये है)
सन् 11 मई 1922 को अंगेजो ने एक सुचना के आधार पर मास्टर जी को गिरफ्तार कर लिया, और जैसे ही ये सुचना उनके मोर्चे के लोगों को लगी उन्होंने हथियारबंद हो गांव घेर लिया तब मास्टर जी ने बेकसूर ना मारे जाए यह सोचकर मोर्चा के लोगों को अंग्रेजो पर हमला ना करने का हुक्म दिया। एक महीने बाद ही मास्टर जी रिहा होकर आ गए और 15 जून 1922 को उनको अंग्रेज पुलिस ने फिर गिरफ्तार कर 7 साल के लिए जेल भेज दिए गए ।
सात साल की जेल के बाद 23 जून 1929 को रिहा हुए मास्टर मोता सिंह जी को 23 जुलाई 1929 को दुबारा ब्रिटिश शाशन के विरुद्ध भड़काने के आरोप
में गिरफ्तार कर 16 सितम्बर 1929 को फिर से आजीवन कारावास की सजा सुनकर जेल भेज दिए गए । इसके बाद 1931 में हुए एक समझोते के बाद जुलाई 1931 में मोता सिंह जी को अन्य कैदियों के साथ रिहा कर दिये गए।
इतनी कठिनाईयो, अत्याचारो और जेल भेजने के बाद भी मास्टर मोता सिंह जी ने आजादी की लड़ाई बंद नहीं की और 1938 में उन्हें पुनः जेल की सजा सुनाई गयी। बार-2 जेल यात्रा और उत्पीड़न के बाद भी मास्टर मोता सिंह जी अपने लक्ष्य से नहीं भटके और आजादी के आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते रहे। मास्टर मोटा सिंह जी ने आजादी की लड़ाई में ही योगदान ही नहीं दिया वरन सिख कौम की इज्जत पगड़ी जेल में ना उतरने देने और सिख पहचान कृपाण को रखने के लिए भी जेल में 105 दिन की भूख हड़ताल की थी । अपनी प्रतिज्ञा अनुसार 1947 में देश के आजाद होने के बाद उन्होंने पैरो में जुते पहने थे।
आजादी की लड़ाई में मास्टर मोता सिंह जी को पंजाब की बब्बर अकाली लहर का शशक्त नेता माना जाता है। 1952 के आम चुनावो में कांग्रेस की टिकट पर चुनव जीत कर विधायक बने। 1959 में कैरों सरकार की तरफ से किसानो पर लगे पशु टैक्स के विरोध में मास्टर मोता सिंह कश्यप जी ने मोर्चा खोल दिया। 9 जनवरी 1960 को जालंधर के सिविल हास्पिटल में मास्टर मोता सिंह जी ने अपनी सांसारिक यात्रा पूरी करके हमेशा के लिए अलविदा कह गए । जालंधर के पॉश रिहायशी इलाके का नाम मास्टर मोता सिंह के नाम पर रखा गया है।
हमें गर्व है कश्यप समाज के इस महान स्वतंत्रता सेनानी योद्धा पर जिन्होंने आजादी की लड़ाई में बढ़चढ़ कर भाग लिया बल्कि दुसरो की प्रेरणा भी बने।
मास्टर मोता सिंह अमर रहे।