हिंदू धर्म में यह स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह धर्म अधिकतर व्यक्तिगत आत्म-अनुशासन, नैतिकता, और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित है। फिर भी, धर्मग्रंथों, परंपराओं और समाज में प्रचलित मान्यताओं के आधार पर कुछ सामान्य दिशा-निर्देश हैं:
क्या कर सकते हैं (सकारात्मक कार्य):
1. धर्म का पालन: सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, और परोपकार के सिद्धांतों का पालन करना।
2. ईश्वर की पूजा: नियमित पूजा, ध्यान, और आराधना करना। किसी भी देवी-देवता की भक्ति कर सकते हैं।
3. ध्यान और योग: शारीरिक और मानसिक शुद्धता के लिए ध्यान और योग का अभ्यास करना।
4. दान और सेवा: जरूरतमंदों की सहायता करना, भूखे को भोजन कराना और धर्मार्थ कार्य करना।
5. वेदों और शास्त्रों का अध्ययन: वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण और महाभारत जैसे धर्मग्रंथों का अध्ययन करना।
6. प्रकृति का आदर: पर्यावरण की रक्षा करना, पेड़ लगाना और सभी जीवों के प्रति दयालु रहना।
7. पवित्रता बनाए रखना: व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में शुद्धता और मर्यादा का पालन करना।
8. पितरों का सम्मान: अपने पूर्वजों और माता-पिता का आदर करना और श्राद्ध कर्म करना।
9. उत्सव मनाना: धार्मिक त्योहारों और अनुष्ठानों में भाग लेना।
क्या नहीं करना चाहिए (नकारात्मक कार्य):
1. झूठ बोलना और धोखा देना: सत्य का पालन न करना धर्म के विरुद्ध है।
2. हिंसा करना: किसी भी जीवित प्राणी को अनावश्यक रूप से हानि पहुंचाना (अहिंसा का पालन आवश्यक है)।
3. मादक पदार्थों का सेवन: नशा करना, जैसे शराब, तंबाकू आदि का सेवन वर्जित माना गया है।
4. चोरी करना: दूसरों की चीजों को चुराना या गलत तरीके से उनका अधिकार लेना।
5. अन्याय और अधर्म का साथ देना: अन्याय का समर्थन करना या उसमें भाग लेना धर्म के विरुद्ध है।
6. अत्यधिक भोग विलास: इंद्रियों के अत्यधिक सुख-साधन में लिप्त होना।
7. प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ना: पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना या पशु-पक्षियों के प्रति निर्दयता दिखाना।
8. अपवित्रता और अशुद्धता: शारीरिक और मानसिक अपवित्रता से बचना चाहिए।
9. दूसरों का अपमान: किसी की जाति, धर्म, या स्थिति का अपमान करना।
लचीला दृष्टिकोण:
हिंदू धर्म में किसी पर कोई चीज़ थोपी नहीं जाती। यह व्यक्तिगत विवेक और आध्यात्मिकता का धर्म है। हर व्यक्ति को अपनी आस्था और समझ के अनुसार जीवन जीने का अधिकार है। धर्म का मूल उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और ईश्वर की प्राप्ति है।
निष्कर्ष:
जो कार्य दूसरों के लिए लाभदायक हो, प्रकृति के साथ सामंजस्य रखे, और आत्मिक उन्नति में सहायक हो, वही करना चाहिए। जो
दूसरों को नुकसान पहुंचाए या नैतिकता के विरुद्ध हो, उससे बचना चाहिए।