पंडित करुपापन कश्यप जी - Leader of Renaissance in Kerala

 


कश्यप समाज की धींवर जाति से संबंध रखने वाले केरल के लिंकन, प्रथम मानव अधिकार कार्यकर्ता पंडित करुप्पन मास्टर की जयंती पर सादर नमन । 


केरल में पंडित करुप्पन के नाम पर कई स्कूल, यूनिवर्सिटी व स्थल निर्मित है। शिक्षा के क्षेत्र में उनका विशेष योगदान रहा है जिस कारण आज केरल राज्य में शिक्षा का स्तर देशभर में बहुत ज्यादा है। 


केरल में धींवर जाति से सम्बन्ध रखने वाले श्री कंडथिपराम्बिल पपु करुप्पन को पंडित करुप्पन मास्टर के नाम से बिख्यात समाजसुधारक थे जिन्हीने अपने समय में छुआछुत और अन्य सामाजिक कुरूतियों के खिलाफ संघर्ष किया था। वो तत्कालीन कोचीन राज्य के प्रथम मानव अधिकार कार्यकर्ता थे और उनके सामाजिक सुधार के कार्यो के कारण उन्हें "केरल का लिंकन" भी कहा जाता था । 


पंडित करुप्पन मास्टर के पिता का नाम पाप्पु और माता का नाम कोचुपेन्नि था और उनका जन्म केरल के एर्नाकलुम ज़िले के चेरनेल्लूर गाँव में 24 मई 1885 को हुआ था और वो हिन्दू समाज की धींवर जाति से सम्बन्ध रखते थे। पंडित कररुप्पन मास्टर संस्कृत के विद्वान, प्रसिद्ध कवि और नाटककार भी थे । उन्होंने संगठन बना अशिक्षा, जातिवाद और सामाजिक कुरूतियों के खिलाफ कार्य किया। केरल में धींवर जाति के लोग अपने को माता सत्यवती के वंसज मानते है और केरल में धींवर जाति अनुसूचित जाति में आती है ।

पंडित करुप्पन (1885-1938) केरल के एक प्रमुख समाज सुधारक, कवि, और शिक्षक थे। उन्हें "केरल का तागोर" भी कहा जाता है। वे विशेष रूप से दलित समुदायों के उत्थान के लिए किए गए अपने कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका योगदान सामाजिक न्याय, शिक्षा, और सांस्कृतिक जागरूकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है।


जीवन परिचय:


जन्म: 24 मई 1885, चेरनल्लूर, केरल।


जाति: उन्होंने इझावा समुदाय से संबंधित होकर निचली जातियों के उत्थान के लिए कार्य किया।


शिक्षा: संस्कृत और पारंपरिक साहित्य में शिक्षा प्राप्त की।



प्रमुख कार्य:


1. समाज सुधार:

करुप्पन ने दलित समुदायों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने निचली जातियों के लोगों को शिक्षा प्राप्त करने और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने के लिए प्रेरित किया।



2. साहित्यिक योगदान:

उन्होंने मलयालम भाषा में कविताएँ और नाटक लिखे। उनकी रचनाएँ सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दों को उजागर करती थीं।


उनकी प्रसिद्ध कृति "जाति कुथीरम्" जाति-आधारित भेदभाव और उसकी अमानवीयता पर आधारित है।




3. वैकोम सत्याग्रह:

पंडित करुप्पन ने वैकोम सत्याग्रह (1924-25) में हिस्सा लिया, जो केरल में मंदिरों की सड़कों पर सभी जातियों के लिए प्रवेश के अधिकार के लिए एक आंदोलन था।



4. शिक्षा में योगदान:

उन्होंने केरल में शिक्षा का प्रसार करने और पिछड़ी जातियों के लिए विद्यालय स्थापित करने में योगदान दिया।




उपाधियाँ:


उनकी विद्वता और योगदान के लिए उन्हें "पंडित" की उपाधि से सम्मानित किया गया।


विरासत:


उनका जीवन सामाजिक समानता, शिक्षा और मानवीय गरिमा के लिए एक प्रेरणा है। उनकी स्मृति में केरल सरकार ने कई विकास परियोजनाओं और शैक्षणिक कार्यक्रमों की शुरुआत की है।


पंडित करुप्पन के विचार और कार्य आज भी सामाजिक न्याय 

के संघर्ष में प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।






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