36 बिरादरी हरियाणा में एक सामाजिक अवधारणा है जो विभिन्न जातियों और समुदायों को दर्शाती है। यह शब्द विशेष रूप से हरियाणा और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में प्रचलित है, जहां अलग-अलग जातियाँ और समुदाय आपस में मिलकर रहते हैं। हरियाणा की समाजिक संरचना में 36 बिरादरी का महत्वपूर्ण स्थान है, और इसे एक सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाता है।
36 बिरादरी का मतलब:
हरियाणा में "36 बिरादरी" का अर्थ है 36 प्रमुख जातियाँ और समुदाय जो सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से एक दूसरे से अलग हैं, लेकिन आपस में भाईचारे और सहयोग की भावना रखते हैं। इस अवधारणा में इन बिरादरियों की विविधता और उनके योगदान को समझने की कोशिश की जाती है।
हरियाणा की प्रमुख बिरादरियाँ:
1. जाट
2. ब्राह्मण
3. पठान
4. राजपूत
5. कश्यप
6. यादव (अहीर)
7. कुम्हार
8. धोबी
9. माली
10. नाई
11. बलाई
12. सिढ़ी
13. मेहतर
14. चमार
15. बंशी
16. सोनार
17. बनिया
18. गोरखपुर
19. बैरागी
20. गोहिल
21. तुरी
22. राठी
23. साहू
24. कुर्मी
25. लोधी
26. सिंह
27. धैर्य
28. ग्वाला
29. कुमावत
30. तिलवाड़ी
31. आदिवासी
32. चुहान
33. बाथम
34. सिकलीगर
35. गुज्जर
36. हरिजन (SC/ST)
यह सूची प्रतीकात्मक है, क्योंकि हरियाणा में विभिन्न गांवों और क्षेत्रों में बिरादरियों की पहचान अलग हो सकती है। यहां सूचीबद्ध बिरादरियाँ समाज की विविधता को दर्शाती हैं, लेकिन इनमें से कुछ जातियाँ और समुदाय अपनी-अपनी रीति-रिवाजों, परंपराओं और धर्म के आधार पर एक दूसरे से अलग होते हैं।
36 बिरादरी का महत्व:
हरियाणा में यह अवधारणा समाज की विविधता, एकता और सहयोग को प्रकट करती है। हर एक बिरादरी का अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। इसके अलावा, यह 36 बिरादरी समाज में भाईचारे की भावना को बढ़ावा देती है और जातीय भेदभाव को कम करने का प्रयास करती है।
निष्कर्ष:
हरियाणा में "36 बिरादरी" एक सांस्कृतिक और सामाजिक विचारधारा का हिस्सा है जो विभिन्न जातियों और समुदायों की एकता को दिखाती है। ये बिरादरियाँ एक-दूसरे के साथ मेलजोल से रहती हैं, और अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ समाज की प्रगति में योगदान करती हैं। 36 बिरादरी की अवधारणा यह
बताती है कि हर व्यक्ति का समाज में महत्वपूर्ण स्थान है, और हमें इन विविधताओं का सम्मान करते हुए एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए।